भारत और संयुक्त राष्ट्र : समता की तलाश में
आचिस मोहन द्वारा *
संयुक्त राष्ट्र महासभा का 68वां वार्षिक सत्र 17 सितंबर से शुरू हुआ जिसका एजेंडा भावी मार्ग की पहचान करना है जिसका चरमोत्कर्ष 2015 पश्चात विकास संबंधी लक्ष्यों पर सर्वसम्मत्ति के रूप में होगा।
प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह का कार्यक्रम 28 सितंबर को वार्षिक आम डिबेट में मंच पर उपस्थित होने का है तथा विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद एवं वरिष्ठ अधिकारियों सहित बाकी भारतीय शिष्टमंडल इस बात पर जोर देगा कि 2015 पश्चात विकास संबंधी एजेंडा में गरीबी उन्मूलन
एवं समावेशी विकास बना रहना चाहिए। भारत का यह अभिमत है कि समता तथा साझी किंतु विभेदीकृत जिम्मेदारियों (सी बी डी आर) के सिद्धांतों को 2015 पश्चात एजेंडा के आकाशदीप के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
प्रधान मंत्री विकसित देशों से यह भी अपील कर सकते हैं कि वे उपभोग के अपने ह्यूमंगस पैटर्न पर दृष्टि डालने के लिए अपने अंदर झांकें। जैसा कि आमतौर पर बहुपक्षीय मंच की बैठकों में होता है, जिसमें प्रधान मंत्री भाग लेते हैं, विश्व की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर विश्व
के अन्य नेताओं द्वारा उनसे अपने विचार रखने के लिए कहा जाएगा। सीरिया एवं 2014 पश्चात अफगान स्थिति से संबंधित वर्तमान संकट ऐसे अन्य मुद्दे हैं जो मुख्य डिबेट तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान अतिरिक्त समय में नेताओं के बीच दर्जनों द्विपक्षीय बैठकों
में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेंगे।
24 अक्टूबर, 2011 को न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 66वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधान
मंत्री जी 2004, 2005, 2008 और 2011 में महासभा को संबोधित करने के बाद से यह प्रधान मंत्री का संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र का पांचवां दौरा होगा। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद अपनी कनाडा यात्रा पूरी करने के बाद न्यूयार्क में प्रधान मंत्री को ज्वाइन
करेंगे।
भारतीय शिष्टमंडल का कार्यक्रम चार अन्य ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों के अधिकारियों की बैठक में भाग लेने का है। इसके अलावा, वे जी-4 (जर्मनी, भारत, जापान और ब्राजील) की बैठक में भी भाग लेंगे। जी-4 संयुक्त राष्ट्र में सुधार की
मांग करता रहा है, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता में वृद्धि करने की मांग करता रहा है ताकि यह विश्व की वर्तमान सच्चाई को प्रतिबिंबित कर सके, न कि उस अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन को जो 1945 में मौजूद था।
भारत एवं जी-4 के अन्य सदस्यों ने पिछले एक साल में संयुक्त राष्ट्र सुधार के मुद्दे को जिंदा रखा है तथा एल-69 एवं सी-10 समूहों के साथ नियमित रूप से इस पर भागीदारी की है। एल-69 अफ्रीका, लैटिन अमरीका, एशिया प्रशांत एवं कैरेबियन के 40 देशों का समूह है जो चाहता
है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार हो ताकि 6 और स्थायी सदस्यों को शामिल किया जा सके - चार जी-4 से एवं दो अफ्रीका से। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार के संबंध में सी-10 या अफ्रीकी संघ का प्रस्ताव भी इसी तर्ज पर है। तीन समूहों अर्थात
जी-4, एल-69 एवं सी-10 में इस प्रश्न पर एक दूसरे के साथ मतभेद है कि किसे वीटो पावर सौंपा जाना चाहिए और किसे नहीं सौंपा जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना संबंधी अभियानों में सबसे अधिक सैनिकों का योगदान करने वाले देश के रूप में भारत के लिए चिंता का एक अन्य क्षेत्र शांति स्थापना के अभियानों का बदलता स्वरूप है।
सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन : भारत ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर, 26 जून, 1945 पर हस्ताक्षर किया
सर ए. रामास्वामी मुदलियार, गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी परिषद के आपूर्ति सदस्य तथा भारत के शिष्टमंडल के नेता ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किया। भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है। इसने 1 जनवरी, 1942 को वाशिंगटन में संयुक्त
राष्ट्र द्वारा घोषणा पर हस्ताक्षर किया तथा 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक सैन फ्रांसिस्को में ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट अंतर्राष्ट्रीय संगठन सम्मेलन में भी भाग लिया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यो एवं सिद्धांतों का लगातार समर्थन किया है तथा विशेष
रूप से शांति स्थापना के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के लक्ष्यों को कार्यान्वित करने में महत्वपूर्ण रूप से योगदान दिया है।
कुछ साल पहले तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था, "पिछले दशकों में भारत ने अपनी सरकार के प्रयासों तथा भारतीय विद्धानों, सैनिकों एवं अंतर्राष्ट्रीय सिविल कर्मचारियों के काम के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र में प्रचुर योगदान किया है। भारत
विकासशील देशों की ओर से संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा को आकार देने में इसकी सहायता करने में सबसे प्रखर आवाजों में से एक रहा है। और इसके सशस्त्र बलों का अनुभव एवं व्यावसायिकता बार-बार संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना से संबंधित अभियानों में अमूल्य साबित
हुआ है - जिसमें सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने अपने जीवन की आहुति दी है।"
1950 के दशक में इसकी शुरूआत के समय से लेकर अब तक संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना से संबंधित 64 अभियानों में से 43 अभियानों में 1,60,000 से अधिक सैनिकों का योगदान किया है। संयुक्त राष्ट्र के नीले झंडे के लिए लड़ते हुए भारतीय सशस्त्र एवं पुलिस बल के 160
से अधिक कार्मिकों ने अपने जीवन की आहुति दी है।
भारतीय सशस्त्र बलों की पहली तैनाती 1950 के दशक के पूर्वार्ध में कोरिया युद्ध के दौरान हुई थी। शांति स्थापना संबंधी अन्य अभियानों में निम्नलिखित शामिल हैं, जिनमें भारतीय कार्मिकों ने भाग लिया है - भारत - चीन (वियतनाम, लाओस, कंबोडिया), कांगो, मोजांबिक, सोमालिया,
रूवांडा, अंगोला, सियरा लियोन और इथोपिया। इस समय, संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना संबंधी विद्यमान 14 मिशनों में 7 मिशनों में भारतीय सशस्त्र बल भाग ले रहा है। भारतीय फौजें लेबनान (यू एन आई एफ आई एल), कांगो (एम ओ एन यू सी), सूडान (यू एन एम आई एस एस), गोलन
हाइट्स (यू एन डी ओ एफ), आइवरी कोस्ट (एम आई एन यू एस टी ए एच) और लाइबेरिया (यू एन एम आई एल) में हैं। संयुक्त राष्ट्र के किसी भी शांति स्थापना मिशन में केवल महिलाओं की पहली टुकड़ी अर्थात भारत से फार्म्ड पुलिस यूनिट 2007 में लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र
शांति स्थापना मिशन के अंग के रूप में तैनात की गई।
परंतु संघर्षों का बदलता स्वरूप जहां शांति स्थापना बल से उत्तरोत्तर उससे अधिक करने के लिए कहा जा रहा है जो इसका परंपरागत अधिदेश
रहा है, भारत के लिए सरोकार का विषय है, तथा संभावना है कि संयुक्त राष्ट्र के मंचों में यह मुद्दा उठेगा।
पिछले वर्षों में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र को ऐसे मंच के रूप में देखा है जो अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के गारंटर के रूप में भूमिका निभा सकता है। हाल के समय में, भारत ने विकास एवं गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, जलदस्युता, निरस्त्रीकरण, मानवाधिकार,
शांति निर्माण एवं शांति स्थापना की बहुपक्षीय वैश्विक चुनौतियों की भावना में संघर्ष करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को सुदृढ़ करने का प्रयास किया है।
1950 और 1960 के दशकों में, भारत ने अफ्रीका एवं एशिया के उस समय तक गुलाम देशों की आजादी के पक्ष में दलील देने के लिए संयुक्त राष्ट्र में नव स्वतंत्र देशों का नेतृत्व किया। भारत ने उपनिवेशिक देशों एवं लोगों को आजादी प्रदान करने पर 1960 की महत्वपूर्ण घोषणा
को सह प्रायोजित किया जिसने सभी रूपों एवं अभिव्यक्तियों के उपनिवेशवाद को किसी शर्त के बिना समाप्त करने की आवश्यकता को प्रमाणित किया।
भारत दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद एवं नस्लीय भेदभाव के विरूद्ध लड़ाई में भी सबसे आगे रहा। भारत ऐसा पहला देश था जिसने 1946 में संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाया और महासभा द्वारा रंगभेद के विरूद्ध उप समिति के गठन में अग्रणी भूमिका निभायी। भारत 1965 में अपनाए
गए सभी प्रकार के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाले देशों में से एक था।
पिछले वर्षों में भारत ने परमाणु निरस्त्रीकरण एवं अप्रसार के उद्देश्य को भी आगे बढ़ाया है। 1996 में 21 देशों के समूह के अंग के रूप में भारत ने निरस्त्रीकरण सम्मेलन को एक कार्य योजना प्रस्तुत किया जिसमें परमाणु हथियारों को चरणबद्ध ढंग से (1996-2020) समाप्त
करने का आह्वान किया गया। परमाणु हथियारों वाले देशों में भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए आह्वान का निरंतर समर्थन किया है।
भारत संयुक्त राष्ट्र में हमेशा कर्कश आवाज रहा है, ऐसी आवाज जो मजबूत थी क्योंकि इसने गुट निरपेक्ष आंदोलन (नाम) तथा विकासशील देशों का समूह 77 गठिन किया जिन्होंने अधिक साम्यपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के लिए संयुक्त राष्ट्र के अंदर
दलील प्रस्तुत की। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 53 में इस बात का उल्लेख है कि बहुपक्षीय संगठन "उच्च जीवन स्तर, पूर्ण रोजगार तथा आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति एवं विकास को बढ़ावा देंगे"।
भारतीय अर्थशास्त्री प्रोफेसर डी. आर. गाडगिल तथा डा. वी. के. आर. वी. राव आधिकारिक विकास सहायता का अनुमान तैयार करने की प्रक्रिया में निकटता से शामिल रहे हैं जिसके तहत यह अपेक्षित है कि विकसित देश अपनी राष्ट्रीय आय का 1 प्रतिशत विकासशील देशों को अंतरित करेंगे।
इस 1 प्रतिशत में से 0.7 प्रतिशत से ओ डी ए का निर्माण होगा।
भारतीय प्रतिनिधियों ने विकास दशक के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। पहला विकास दशक 1961 से 1970 तक था तथा चौथा विकास दशक 1990 का दशक था। शीत युद्ध पश्चात युग ने उत्तर-दक्षिण डोनर और दानग्राही के समीकरण को परिवर्तित किया तथा विकासशील देश अनुभव करने
लगे कि निजी विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए उन्हें अपनी अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्गठन करने की जरूरत है क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी सहायता अतीत की वस्तु बन गई।
यह प्रक्रिया विश्व के नेताओं द्वारा सितंबर, 2000 में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी घोषणा के रूप में अपने चरम पर पहुंची जहां उन्होंने 2015 तक अभाव कम करने के समयबद्ध एवं मापेय लक्ष्यों को प्राप्त करने का वादा किया। इसने एम डी जी के लिए आठ
सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को अपनाया। वर्तमान 68वां सत्र 2015 पश्चात एजेंडा पर विचार करेगा। भारत चाहता है कि सदस्य देश एक अंतर सरकारी प्रक्रिया के गठन पर सहमत हों, जिसे 2014 तक इन मुद्दों पर विचार - विमर्श करना चाहिए।
हाल के दशकों में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार के लिए आह्वान करने के अलावा भारत ने सभी रूपों के आतंकवाद के प्रति ''शून्य सह्यता’’ के दृष्टिकोण की वकालत की है।
1996 में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक प्रारूप व्यापक अभिसमय (सी सी आई टी) प्रस्तुत किया जिसका उद्देश्य आतंकवाद से लड़ने के लिए एक आद्योपांत कानूनी रूपरेखा प्रदान करना है। भारत ने इसे शीघ्र अपनाए जाने के लिए काम करना जारी रखा है। सी सी आई टी की
अनेक विशेषताओं को पहले ही अपना लिया गया है।
भारत संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि जैसी संयुक्त राष्ट्र निधियों में योगदान करने वाले प्रमुख देशों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि की स्थापना 2005 में प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह, यूएस राष्ट्रपति जार्ज बुश तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव
कोफी अन्नान द्वारा की गई। लोकतांत्रिक मूल्यों एवं प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए भारत आज इस निधि में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।
सितंबर, 2012 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में पूर्व विदेश मंत्री भारत 2011-12
में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य था तथा इस क्षेत्र में समुद्री जल दस्युता पर एक खुले डिबेट को आगे बढ़ाया। भारत अब तक 7 बार सुरक्षा परिषद में सेवा कर चुका है - 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-2012 में।
संयुक्त राष्ट्र में भारत
- भारत 7 बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है - 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-2012
- भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है
- भारत ने 1945 में सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया, इसके शिष्टमंडल का नेतृत्व सर सी पी रामास्वामी मुदलियार ने किया
- भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना संबंधी अभियानों में योगदान करने वाला सबसे बड़ा देश है
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना से संबंधित 64 अभियानों में से 43 अभियानों में 1,60,000 से अधिक सैनिकों का योगदान किया है
- संयुक्त राष्ट्र के नीले झंडे के नीचे लड़ते हुए भारतीय सशस्त्र एवं पुलिस बल के 160 से अधिक कार्मिकों ने अपने जीवन की आहुति दी है।
- संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना के लिए चल रहे 14 मिशनों में से 7 मिशनों में भारतीय सशस्त्र बल भाग ले रहा है।
- भारत ने उपनिवेशी देशों एवं लोगों को आजादी प्रदान करने पर 1960 की महत्वपूर्ण घोषणा को सह प्रायोजित किया
- इस घोषणा के कार्यान्वयन की देखरेख करने के लिए गठित विशेष समिति की सी.एस. झा ने अध्यक्षता की
- भारत ऐसे देशों में से पहला देश था जिन्होंने 1946 में संयुक्त राष्ट्र में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के मुद्दे को उठाया
- भारत 1965 में अपनाए गए सभी रूपों के नस्लीय भेदभावों के उन्मूलन पर अभिसमय पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाले देशों में से एक था
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण एवं अप्रसार के मुद्दे को आगे बढ़ाया है
- यह परमाणु हथियारों से लैस एकमात्र ऐसा देश है जिसने परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन की मांग की है
- 1996 में 20 अन्य देशों के साथ भारत ने परमाणु हथियारों के चरणबद्ध उन्मूलन के लिए कार्य योजना प्रस्तुत किया (1996 - 2020)
- भारत ने विकासशील देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र के ओ डी ए अनुमानों का सुनिश्चय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी
- भारत ने ब्राजील, जापान और जर्मनी के साथ मिलकर 2005 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों की मांग करने के लिए जी-4 का गठन किया
- 1996 में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक प्रारूप व्यापक अभिसमय (सी सी आई टी) प्रस्तुत किया
- भारत ने 2005 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि का गठन किया तथा इसमें योगदान करने वाले प्रमुख देशों में से एक है
(* आर्चिस मोहन नई दिल्ली आधारित फ्रीलांस पत्रकार हैं। ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)