आर्चिस मोहन द्वारा
17 साल पुराने समूह ने 1996 में अपनी स्थापना के बाद से अपनी वार्ता मेज पर जो महत्वाकांक्षी एजेंडा पाया है उससे कहीं अधिक महत्वाकांक्षी इस बार उनकी वार्ता मेज पर होगा जब असेम (एशिया – यूरोप बैठक) विदेश मंत्री 11 और 12 नवंबर को नई दिल्ली में एकत्र होंगे।
यदि हम 2012 में विएनटेन में पिछली असेम शिखर बैठक में विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद के स्पष्ट भाषण की व्याख्या करें, तो इसकी चुनौतियां यह है कि कैसे न केवल एशिया एवं यूरोप के बीच व्यापक श्रेणी के मुद्दों पर विचार – विमर्श करने के लिए अपनी तरह के वार्ता
मंच के रूप में इस समूह की अनौपचारिकता को बरकरार रखा जाए अपितु मूर्त परिणाम प्राप्त करने के लिए इस मंच को कैसे पुनर्जीवित किया जाए।
पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक प्रेक्षक यह देखने के लिए 11वीं असेम विदेश मंत्री बैठक (असेम एफ एम एम 11) में विचार – विमर्श की उत्सुकता से खोज – खबर लेंगे कि क्या एशिया एवं यूरोप इस मंच को पुनर्जीवित करने तथा इसके अंतर्भूत लोकतंत्र से पीछे हटे बगैर
इसे अधिक परिणामोन्मुख मंच बनाने के लिए एक साथ आ सकते हैं। ऐसी उम्मीद है कि यह बैठक असेम के लिए ऐसे पथ निर्माण करेगी जिसके आधार पर इसके भागीदार 2014 में ब्रुसेल्स में अपनी अगली शिखर बैठक में तथा 2016 में इसके 20वीं वर्षगांठ समारोह में अधिक मजबूत शक्ति के
रूप में उभरना चाहते हैं।
इस समय असेम में कुल 51 भागीदार हैं। इसमें एशिया एवं यूरोप के 49 देश तथा दो क्षेत्रीय समूह – यूरोपीय संघ तथा आसियान शामिल हैं। यह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर नीति वार्ता पर चर्चा करने के लिए एकमात्र एशिया – यूरोप क्षेत्र दर क्षेत्र मंच
है। इसलिए इसे दोनों महाद्वीपों के बीच ''नया सिल्क रोड’’ की भी संज्ञा दी गई है।
अधिकांश अन्य क्षेत्रीय समूहों से भिन्न असेम का कोई सचिवालय नहीं है। इसकी एकमात्र भौतिक संस्था सिंगापुर में स्थित एशिया – यूरोप प्रतिष्ठान (ए एस ई एफ) है जो जन दर जन विनिमय, सांस्कृतिक संपर्क तथा आपसी हित के राजनीतिक एवं आर्थिक विषयों पर सेमिनार के आयोजन
के माध्यम से एशिया एवं यूरोप के बीच परस्पर समझ एवं सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
बुडापेस्ट, हंगरी में जून 2011 में 10वीं असेम विदेश मंत्री बैठक
असेम : एक जीवंत एवं लोकतांत्रिक मंच
स्थाई सचिवालय के अभाव में असेम अपने हितधारकों के बीच नियमित बैठकों पर बहुत अधिक निर्भर है। असेम क्षेत्रीय शिखर बैठकें दो साल में एक बार होती हैं जहां नेता उस एजेंडा पर सहमत होते हैं जिसे व्यवस्था क्रम भंग में लागू किया जाना होता है। असेम की अगली शिखर बैठक
2014 में ब्रुसेल्स में होने वाली है।
परंतु, असेम इन शिखर बैठकों के बीच एक जीवंत मंच बना हुआ है। यह इस साल मंत्री एवं अधिकारी स्तर पर 50 वार्ता का आयोजन करता है। इसके तहत वित्त, व्यापार, संस्कृति, शिक्षा, आपदा तत्परता, परिवहन, अप्रवासन, जलवायु परिवर्तन, समुद्री जल दस्युता, सूचना प्रौद्योगिकी,
खाद्य सुरक्षा, विकास, रोजगार, ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक अभिशासन तथा अनेक अन्य विषय शामिल होते हैं।
असेम की विशेषता अंत:क्रियात्मक सत्रों पर आधारित एक खुले मंच के रूप इसकी अनौपचारिकता है जहां आपसी हित के सभी मुद्दों को उठाया जा सकता है। यह मंच अनेक आयाम मुद्दों को वार्ता की मेज पर प्रस्तुत करने में समर्थ बनाता है। असेम का बुनियादी सिद्धांत सदस्यों के बीच
''सहायता आधारित’’ संबंध के साथ समान साझेदारी पर बल देना है। यह न केवल उच्च स्तरीय बैठकों पर बल देता है, अपितु जन दर जन संपर्कों पर भी बल देता है।
तथापि अनेक सदस्यों का विश्वास है कि इस समूह की कुछ अच्छाइयों, जैसे कि बड़ी संख्या में मुद्दों को लेने के लिए इसके खुलेपन ने साझे आधारों को ढूंढ़ने के प्रयासों में रूकावट पैदा की है जिन्हें आगे चलकर नीति रूपरेखा के आकार में आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन यह
किसी भी रूप में इस बात का संकेत नहीं है कि सदस्य इस मंच की वर्तमान एवं भावी प्रासंगिकता को लेकर संदेह करते हैं; जो इस बात से स्पष्ट है कि इसके सदस्यों की संख्या 1996 में 26 से बढ़कर इस समय 51 हो गई है।
एक नया दृष्टिकोण
इस पृष्ठभूमि में, असेम के भागीदारों ने मेजबान भारत के इस सुझाव का समर्थन किया है कि अपने विचार – विमर्शों के पुनर्गठन एवं पुन: अभिमुखीकरण के लिए इस मंच को एक नया दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। 3 से 5 सितंबर 2013 के दौरान दिल्ली एन सी आर में आयोजित असेम वरिष्ठ
अधिकारी बैठक (एस ओ एम) में असेम के सदस्यों ने इस समूह को पुनर्जीवित करने के भारत के सुझावों का अच्छी तरह से समर्थन किया है।
वरिष्ठ अधिकारी बैठक ने मुद्दों के समुच्चय को चिह्नित करने की प्रक्रिया शुरू की जिसमें असेम के सदस्य असेम देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए विशिष्ट पहलों के सह प्रायोजक के रूप में 5-6 देशों के छोटे-छोटे समूहों का निर्माण करेंगे। सहयोग का यह नया प्रारूप असेम
एम एम एम 11 की थीम ''असेम : प्रगति एवं विकास के लिए साझेदारी का सेतु’’, जिसका प्रस्ताव भारत द्वारा रखा गया तथा असेम के शेष सदस्यों द्वारा स्वागत किया गया, की प्रासंगिकता में भी वृद्धि करेगा। 9-10 नवंबर को नई दिल्ली में एस ओ एम बैठक में अंतिम रूप दिए जाने
पर इन पहलों की फिर से असेम एफ एम एम 11 में घोषणा की जाएगी तथा असेम की अगली शिखर बैठक में असेम के नेताओं से इस पर सहमति की प्रतीक्षा की जाएगी।
भारत और असेम
बीजिंग में 2008 में आयोजित 7वीं असेम शिखर बैठक में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन
सिंह
भारत 2007 में असेम में शामिल हुआ तथा 2008 में बीजिंग में इसकी 7वीं शिखर बैठक में भाग लिया जहां प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया। भारत इस समूह का एक महत्वपूर्ण सदस्य बन गया है तथा ए एस ई एफ के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है। असेम की 8वीं शिखर बैठक 4-5 अक्टूबर, 2010 को ब्रुसेल्स में आयोजित की गई जिसमें उप राष्ट्रपति एम हामिद अंसारी ने भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया।
विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने 5 – 6 नवंबर, 2012 को विएनटेन, लाओ पीडीआर में आयोजित असेम की 9वीं शिखर बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। अपने भाषण में, श्री सलमान खुर्शीद ने असेम से भारत की उम्मीदों एवं आकांक्षाओं का ब्यौरा प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि असेम को आतंकवाद, समुद्री सुरक्षा, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दों के प्रति अधिक केंद्रीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
नवंबर, 2012 में विएन्टेन में असेम की 9वीं शिखर बैठक के दौरान लाओ पीडीआर
के राष्ट्रपति द्वारा दिए गए गाला डिनर में विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद का अभिवादन करते हुए लाओ पीडीआर के उप प्रधान मंत्री तथा विदेश मंत्री डा. थोंगलुन सिसोलिथ
विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि विकासशील देशों एवं उभरते बाजारों के लिए प्रासंगिकता के क्षेत्रों पर काम करने तथा उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं, विकसित एवं विकासशील देशों से युक्त विविध प्रतिभागिता को देखते हुए आर्थिक अभिशासन की वैश्विक रूपरेखा को
अधिक कारगर बनाने के लिए काम करने की असेम में ''अनोखी क्षमता’’ है। विदेश मंत्री जी ने कहा कि यहां एशिया एवं यूरोप के बीच वार्ता एवं सहयोग के मंच के रूप में यह मूल रूप से संगत है तथा सारवान मूल्य जोड़ सकता है।
विदेश मंत्री जी ने इस बात को भी रेखांकित किया कि ''कैसे असेम को निश्चित रूप से ऐसी दिशा में स्वयं को जोड़ने की जरूरत है जो ऐसे सहयोग में सुविधा प्रदान करती है, उसे तेज करती है और संभव बनाती है। मेरे विचार से यह असेम के एजेंडा में संभवत: सबसे अधिक प्रासंगिक
मुद्दा अर्थात् ''असेम की भावी दिशा’’ है। उन्होंने कहा कि इस मंच के भागीदारों को चाहिए कि वे असेम अंतर – महाद्वीपीय सेतु बनाने की दिशा में इसके विकास को तेज करें जिसके लिए यह बना है तथा इसके लिए उन्हें वैश्विक विकास एवं प्रगति, शांति एवं स्थिरता में योगदान
करने की हमारे देशों की ताकतों एवं क्षमताओं को एक साथ लाना चाहिए।''
यूरोप एवं एशिया के बीच एक आर्थिक सेतु
यूरोप को उस समय अनियंत्रित आर्थिक गिरावट का सामना कर पड़ रहा था जब असेम के राष्ट्राध्यक्षों की 2008 में बीजिंग में बैठक हुई थी। उस समय यूरोप के देशों ने एशिया के देशों से वित्तीय संकट से जूझ रही यूरोजोन की अर्थव्यवस्थाओं की मदद करने का अनुरोध किया था।
एशिया के देशों ने ऐसा किया भी। एशिया के देशों को यूरोपीय निर्यात ने इस संकट से बाहर निकलने में यूरोप के देशों की मदद की। इसके बाद से अब पांच वर्ष का समय बीत गया है तथा आज स्थिति काफी भिन्न है। असेम के विदेश मंत्रियों की दिल्ली में ऐसे समय में बैठक होने जा
रही है जब औद्योगिक यूरोप में भारत जैसे उभरते बाजारों एवं आसियान के देशों की तुलना में विकास की दर बेहतर है, जिनकी अर्थव्यवस्थाओं के विकास की दर धीमी पड़ गई है। यह ऐसा समय है जब यूरोप के देश उभरते बाजारों के आर्थिक समुत्थान में शामिल हो रहे हैं।
यहीं पर असेम को विशेष रूप से 2014 की शिखर बैठक से पूर्व नियमित रूप से आदान – प्रदान करने के लिए दोनों पक्षों के व्यावसायिक नेताओं एवं नीति निर्माताओं को एक साथ लाने में भूमिका निभाने की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों में इन बैठकों की अनदेखी की गई है। असेम की वेबसाइट
के अनुसार, असेम के आर्थिक आधिकारियों की पिछली बैठक 2006 में रोटरडम में हुई थी।
दोनों पक्ष मुक्त व्यापार करारों पर वार्ता को पूरा करने का भी प्रयास करेंगे। वर्ष 2011 से एक व्यापक यूरोपीय संघ – दक्षिण कोरिया एफ टी ए स्थापित है। जापान, सिंगापुर, भारत, वियतनाम, मलेशिया एवं थाइलैंड जैसे देशों के साथ वार्ता विभिन्न चरणों पर है। इस बीच
एशिया के देश एशिया की सभी अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आर सी ई पी) को स्थापित करने में व्यस्त हैं। यूरोपीय संघ तथा असेम के एशियाई सदस्यों के बीच इस समय व्यापार लगभग 900 बिलियन यूरो है। यूरोपीय कंपनियां एशिया
में निवेश करने वाले अग्रणी निवेशकों के रूप में हैं। 2010 में यूरोपीय संघ का 17.2 प्रतिशत वहिर्जावक निवेश एशिया में आया।
असेम की वेबसाइट के अनुसार, 2012 में यूरोपीय संघ के सभी आयात में एशिया की हिस्सेदारी 29.8 प्रतिशत तथा निर्यात में हिस्सेदारी 21.4 प्रतिशत थी। एशिया के चार देश यूरोपीय संघ के शीर्ष 10 व्यापार साझेदारों में शामिल हैं जिसमें चीन (12.5 प्रतिशत) के साथ सबसे ऊपर
है, जिसके बाद जापान (3.4 प्रतिशत), भारत (2.2 प्रतिशत), दक्षिण कोरिया (2.2 प्रतिशत) और सिंगापुर (1.5 प्रतिशत) का स्थान है।
इस समय असेम के देशों में विश्व की 60 प्रतिशत आबादी रहती है, वैश्विक जी डी पी में इसका हिस्सा 52 प्रतिशत है तथा विश्व व्यापार में इसका हिस्सा 68 प्रतिशत के आसपास है।
*आर्चिस मोहन StratPost.com.में विदेश नीति संपादक हैं।
(ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।)
असेम तथा पत्रक
26 सदस्यों के साथ असेम की स्थापना 1996 में हुई
इस समय इसके सदस्यों की संख्या 51 है
सदस्य: यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देश, 2 यूरोपीय देश, यूरोपीय आयोग, एशिया के 20 देश तथा आसियान सचिवालय असेम वार्ता के तहत राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार – विमर्श किया जाता है
भारत 2007 में असेम का सदस्य बना
असेम विश्व की 60 प्रतिशत आबादी, 52 प्रतिशत वैश्विक जी डी पी एवं लगभग 68 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है
असेम के ईयू – एशियाई सदस्यों के बीच व्यापार 900 बिलियन यूरो है
असेम प्रक्रिया में विभिन्न मंच प्रशाखाएं शामिल हैं जो इस प्रकार हैं:
- एशिया – यूरोप व्यवसाय मंच (ए ई बी एफ)
- एशिया – यूरोप संसदीय साझेदारी बैठक (ए एस ई पी)
- एशिया – यूरोप जन मंच (ए ई पी एफ)
- असेम इको – इनोवैशन सेंटर (ए एस ई आई सी)