राजदूत (सेवानिवृत्त) स्कंद तायल द्वारा*
कोरिया गणराज्य की पहली महिला राष्ट्रपति महामहिम पार्क गूएन-ही राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के निमंत्रण पर 15 से 18 जनवरी, 2014 के दौरान भारत की यात्रा पर आ रही हैं।
उनकी यह यात्रा एशिया की तीसरे और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच द्विपक्षीय संबंधों को तेजी से गहन करने की दिशा में एक प्रमुख उपलब्धि होगी। 5 साल के अपने कार्यकाल के पहले ही वर्ष में राष्ट्रपति पार्क की यात्रा उनके पूर्ववर्ती ली म्युंग-बाक द्वारा भारत
के साथ स्थापित किए गए मजबूत संबंधों के प्रति उनके प्रशासन की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है।
भारत ने जनवरी 2010 में 61वें गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राष्ट्रपति ली म्युंग - बाक को आमंत्रित करके भारत - कोरिया गणराज्य
संबंधों के महत्व को स्वीकार किया था। उनकी इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंध को ''शांति एवं समृद्धि के लिए दीर्घ अवधि की सहयोगात्मक साझेदारी’’ से ऊपर उठाकर ''सामरिक साझेदारी’’ के स्तर पर पहुंचाया गया, जैसा कि 2004 में राष्ट्रपति रो मोऊ हूण की राजकीय
यात्रा के दौरान घोषणा की गई। राष्ट्रपति रो उदारवादी पार्टी से थे जबकि राष्ट्रपति ली और पार्क कंजर्वेटिव पार्टी से हैं। यह नोट करना आश्वस्त करने वाला है कि दोनों देशों में भारत और कोरिया गणराज्य के बीच मजबूत संबंध के लिए पूर्ण द्विदलीय समर्थन प्राप्त
है।जनवरी, 2010 में नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करते हुए राष्ट्रपति ली म्युंग
पिछले वर्षों में, भारत और कोरिया गणराज्य के बीच संबंध अनेक अनोखे चरणों से गुजरे हैं। 1950 का दशक ऐसी अवधि थी जिसमें लोकतांत्रिक भारत तथा एकाधिकारवादी दक्षिण कोरिया के बीच दूरी थी। 1960 एवं 1970 के दशकों में केवल सीमित भागीदारी देखने को मिली क्योंकि कोरिया
गणराज्य ने एकाधिकारवाद को जारी रखा। 1980 के दशक में, कोरिया गणराज्य की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति ने भारतीय नेतृत्व का ध्यान आकृष्ट किया। जब 1980 के दशक के उत्तरार्ध में कोरिया गणराज्य ने वास्तविक लोकतंत्र को गले लगाया तब द्विपक्षीय संबंध तेजी से बढ़ने
लगे।
प्रधान मंत्री पी वी नरसिह्म राव की 1993 में कोरिया गणराज्य की यात्रा ने भारत में कोरिया के चाइबोल्स के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। समय के साथ सैमसंग,
एल जी तथा हुंदई मोटर्स जैसी कोरिया की कंपनियां भारत में घरेलू ब्रांड बन गयी हैं।प्रधान मंत्री पी वी नरसिह्म राव ने 1993 में कोरिया गणराज्य का दौरा किया।
दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के बीच आर्थिक आदान - प्रदान में तेजी से वृद्धि हुई है। भारत - कोरिया गणराज्य व्यापार वर्ष 2011 में 20 बिलियन के आंकड़े को पार कर गया। वास्तव में, भारत - कोरिया गणराज्य व्यापार भारत - जापान व्यापार से अधिक है। दोनों देशों
ने 2010 में एक व्यापक आर्थिक साझेदारी का निर्माण करके घनिष्ठ आर्थिक भागीदारी शुरू करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी।
रक्षा के क्षेत्र में भी संबंध तेजी से बढ़ रहे हैं। मार्च, 2012 में प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह की सियोल की आधिकारिक यात्रा के बाद सियोल में भारतीय दूतावास
में एक रक्षा प्रकोष्ठ खोला गया है। 2010 में रक्षा मंत्री ए के एंटोनी की सियोल की यात्रा के दौरान एक रक्षा सहयोग करार पर हस्ताक्षर किया गया है। पहली बार कोरिया गणराज्य से पांच माइन स्वीपर की खरीद के लिए संविदा पर भारतीय सेना सक्रियता के साथ विचार कर रही
है।मार्च, 2012 में सियोल में प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह की अगवानी करते हुए राष्ट्रपति ली म्युंग बाक
हमारे समय में, जन दर जन संपर्क किसी द्विपक्षीय साझेदारी के महत्वपूर्ण घटक हैं। हाल के वर्षों में दोनों ही देशों ने एक दूसरे की राजधानी में सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना की है। सियोल एवं पुसान में दो विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। भारत के दिल्ली
विश्वविद्यालय तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कोरियाई अध्ययन के समृद्ध विभाग हैं।
सामरिक एवं आर्थिक साझेदारी को गहन करने के लिए दोनों पक्षों में मजबूत इच्छाशक्ति है तथा राष्ट्रपति की आगामी यात्रा आने वाले वर्षों के लिए एक स्पष्ट रोड मैप तैयार करने का अवसर प्रदान करेगी।
''सामरिक साझेदारी’’ की घोषणा को अधिक अंतर्वस्तु प्रदान करने की आवश्यकता है। पहले से ही उप मंत्री / सचिव स्तर पर एक नियमित विदेश नीति और सामरिक वार्ता है। यह उपयोगी होगा कि दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच नियमित रूप से बातचीत हो। जैसा कि
उत्तर - पूर्वी एशिया में सुरक्षा परिदृश्य चीन की हाल की हरकतों के कारण कुछ चिंता का कारण है, इसलिए यह ऐसा विषय है जिस पर सर्वोच्च स्तरों पर विचार - विमर्श होना चाहिए। भारत यह भी देखने का इच्छुक होगा कि कोरिया गणराज्य एवं जापान के बीच वर्तमान वैमनस्यपूर्ण
संबंधों में कुछ सुधार हो क्योंकि दोनों ही देश पूर्वी एशिया में भारत के सामरिक साझेदार हैं।
हाल के वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार में थोड़ी गिरावट देखने को मिली है। यह चिंता का कारण है। ऐसी संभावना है कि राष्ट्रपति पार्क जल्दी से अनुमोदन के लिए चिर प्रतीक्षित पोस्को परियोजना का मुद्दा उठाएंगे। उड़ीसा में 12 मिलियन टन के इस्पात संयंत्र के लिए 12
बिलियन अमरीकी डालर का यह प्रस्तावित निवेश पर्यावरणीय एवं भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दों के कारण फंसा हुआ है। राष्ट्रपति पार्क भारतीय पक्ष को असैन्य परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में कोरियाई कंपनियों की क्षमता काके प्रस्तुत करने की भी उत्सुक होंगी। स्मरणीय
है कि तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की यात्रा के दौरान जुलाई, 2011 में दोनों देशों के बीच एक असैन्य परमाणु सहयोग करार पर हस्ताक्षर किया गया था।
हमारे ओर से, हमें अपने स्वयं के प्रक्षेपण यानों पर कोरिया के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में इसरो की रूचि को दोहराने की आवश्यकता है। कोरिया गणराज्य के साफ्टवेयर तथा आईटी समर्थित सेवा बाजार में भारत की आईटी कंपनियों के प्रवेश पर भी जोश के साथ धक्का देने
की जरूरत है। कोरियाई बाजार के लिए भारत की जेनरिक दवाओं को मंजूरी प्रदान करने के लिए कोरिया गणराज्य को अधिक खुला होने की जरूरत है। आम एवं सब्जियों जैसे भारतीय कृषि उत्पादों के संबंध में कोरियाई एफ डी ए द्वारा दीर्घ विलंब भारत की एक स्थाई शिकायत रही है, जिसे
अभी तक कोरियाई प्राधिकारियों द्वारा दूर नहीं किया गया है।
भारत एवं कोरिया गणराज्य के बीच व्यापार अंतराल में वृद्धि भारत के लिए चिंता का विषय है। अतिथि डिग्नीटरी को इस बात पर राजी करने की आवश्यकता है कि भारत से उत्पादों एवं सेवाओं के लिए कोरिया गणराज्य भी निश्चित रूप से उसी तरह खुला हो जिस तरह कोरिया के सफेद
बजाजी सामानों, आटोमोबाइल एवं उपकरण के लिए भारतीय बाजार खुले हैं।
कोरिया को निवेशक के रूप में भारत के फलते - फूलते अवसंरचना क्षेत्र में भी प्रवेश करने की जरूरत है। भारतीय बाजार में कोरिया की कंपनियां पहले से ही सक्रिय हैं जैसे कि विद्युत क्षेत्र में दूसान। शहरी परिवहन में हुंदई रोटेम तथा निर्माण क्षेत्र में सैमसंग सी एंड
ई। उन्हें भारत के साथ अपने संबंध को क्रेता - विक्रेता संबंध से ऊपर उठाकर दीर्घ अवधि के निवेशक के रूप में परिवर्तित करने की जरूरत है। भारत के अवसंरचना क्षेत्र में कोरियाई निवेश को धक्का देने एवं प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
खुशी की बात यह है कि भारत और कोरिया गणराज्य के बीच कोई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दा नहीं है। दोनों ही देश खुली अर्थव्यवस्थाओं के साथ जीवंत लोकतंत्र हैं। वे पूर्वी एशिया में शांति एवं अमन चैन सुनिश्चित करने के लिए एक विश्वव्यापी दृष्टिकोण रखते हैं। दोनों
ही देश शांतिपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिवेश सृजित करने के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। कोरिया गणराज्य की नई राष्ट्रपति की आगामी यात्रा उन्हें भारत की प्रचुर आर्थिक एवं सामरिक क्षमता को समझने का अवसर प्रदान करेगी। भारतीय
नेतृत्व के साथ राष्ट्रपति पार्क की चर्चा इस घनिष्ट संबंध को निरंतर गहन करने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि करने का अवसर प्रदान करेगी।
(*राजदूत (सेवानिवृत्त) स्कंद तायल कोरिया गणराज्य में भारत के राजदूत रह चुके हैं। हाल ही में उन्होंने एक पुस्तक लिखी है जिसका शीर्षक "इंडिया एंड रिपब्लिक ऑफ कोरिया : इंगेज्ड डेमोक्रेसी” है। इस समय वह दिल्ली विश्वविद्यालय
में अतिथि प्रोफेसर हैं तथा skandtayal@hotmail.com पर इनसे संपर्क किया जा सकता है।)