लेखक : मनीश चंद
विश्व में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व अपने पूरे प्रवाह पर है। शब्द की हर दृष्टि से यह महापर्व है - अनूठे ड्रामा, दर्शक एवं रंग की दृष्टि से तथा हर तरह के शोरगुल की दृष्टि से भारत में संसदीय चुनाव ने नये बेंचमार्क स्थापित किए हैं जिनका विश्व में कहीं और
मिलना असंभव है। सांख्यिकी की दृष्टि से आश्चर्य होता है: 1.2 बिलियन की आबादी वाले देश में 814.5 मिलियन भारतीय 16वीं लोकसभा के चुनाव में मतदान करने के लिए पात्र हैं। 16वीं लोकसभा के चुनाव 7 अप्रैल से 12 मई तक पूरे देश में नौ चरणों में हो रहे हैं। मतदाताओं
का आकार- प्रत्येक प्रौढ़ भारतीय जो 1 जनवरी, 2014 की स्थिति के अनुसार 18 साल का है, अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए स्वतंत्र है- 28 राष्ट्रों वाले यूरोपीय संघ तथा भारत को माइनस करके यूएस एवं दक्षिण एशिया की कुल आबादी से अधिक है। 2009 में पिछले चुनाव के बाद
से मतदाताओं की सूची में लगभग 100 मिलियन लोगों को शामिल किया गया है। और यहां कुछ और तथ्य दिए गए हैं जो सही मायने में आंखें खोलने वाले हैं: इस साल कुल 919452 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं जिसमें कुल 814.5 बिलियन पंजीकृत मतदाता 300 से अधिक राजनीतिक दलों द्वारा
खड़े किए गए उम्मीदवारों में से अपना उम्मीदवार चुनने के लिए 1878303 इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का प्रयोग करेंगे।

तर्क एवं संभार तंत्र
इतने बड़े पैमाने पर चुनाव आयोजित करने के लिए संभार तंत्र वास्तव में बहुत जटिल कार्य है परंतु भारत के निर्वाचन आयोग, जो एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है तथा निष्ठा के अक्षुण्य मानकों के लिए विख्यात है, भारत की आजादी के 67 वर्षों में स्वतंत्र, निष्पक्ष
एवं विश्वसनीय चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आगे आया है। इस साल चुनाव आयोग ने लगभग 11 मिलियन प्लस कार्मिकों को तैनात किया है ताकि विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद किसी रूकावट के बिना पूरी हो। चुनाव आयोग जागरूकता अभियानों की एक श्रृंखला का आयोजन करने,
सूचित एवं नैतिक ढंग से अपने मताधिकार का प्रयोग करने तथा लोकतंत्र की सेवा में अपने पुनीत कर्तव्य के रूप में मतदान को लेने के लिए भारतीयों को प्रोत्साहित करने के लिए सेलेब्रीटीज को अभियान में शामिल करने के लिए सक्रिय रहा है।
भारत में लोकसभा चुनाव, जो हर पांचवे वर्ष में आयोजित होते हैं, जब तक कि मध्यावधि चुनाव न हो, जो बाध्यकारी परिस्थितियों के कारण राष्ट्र पर थोपे जाते हैं, नि:संदेह लोकतंत्र के ब्लाकबस्टर, तर्कशील भारतीयों के लिए उत्सव तथा लोकतंत्र की सत्यापनीय दावत हैं।
इन सब के अलावा सार्वभौमिक प्रौढ़ मताधिकार पर आधारित चुनाव एक महान लेवलर है क्योंकि 18 साल से अधिक आयु के सभी प्रौढ़ भारतीयों के पास अपने भावी शासकों के भाग्य का निर्णय करने के लिए एक मत होता है, चाहे वे सेलिब्रिटी हों, खरबपति हों या बिल्कुल कंगाल।
भारत
में चुनाव के दिन से पूर्व वोटिंग मशीन को छांटते हुए एक कार्यकर्ता<br/>
ग्लोबल मीडिया फ्रेंजी
कुछ लोगों को आश्चर्य होता है कि भारत में चुनाव की ओर विश्व का ध्यान इस तरह से खींचता है जिस तरह से कहीं और के चुनाव की ओर ध्यान नहीं खींचता है तथा इसमें पत्रकारों, संवाददाताओं का समूह तथा सादे जिज्ञासु शामिल होते हैं। अब हम इस नवीनतम चुनाव की बात करते हैं।
कोई 200 विदेशी संवाददाता हैं जो भारत के कोने- कोने में बिखरे हुए हैं तथा उसे पकड़ने का प्रयास कर रहे हैं जो स्पष्ट रूप से अनानुमेय है तथा यह चुनाव पूरे विश्व में देखा जा रहा है। ये पत्रकार विश्व के कुछ सबसे शक्तिशाली मीडिया नेटवर्क का प्रतिनिधित्व करते
हैं तथा वे बी बी सी, सी एन एन, ब्लुमबर्ग, टाइम, सीडनी मार्निंग हेरर्ड, रियूटर, ए एफ पी, ए पी, असही सिमबून तथा क्योदो न्यूज जैसे बड़े समाचार चैनलों से जुड़े हैं। इसके अलावा पड़ोसी देशों के कुछ छोटे मीडिया संगठनों जैसे कि जमुना टेलीविजन तथा बंगला न्यूज से
भी कुछ पत्रकार आए हैं।
भारत में 2014 के चुनावों में पूरी दुनिया की रूचि अद्वितीय है तथा इसके अनेक कारण हैं : भारत की बढ़ती राजनैयिक प्रोफाइल तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ देश के बढ़ते एकीकरण को देखते हुए विश्व की इस बात में रूचि है कि भारत पर शासन कौन करने वाला है तथा इसके
लिए विजयी कौन हो रहा है। इस बार मतदान का परिदृश्य गुणवत्ता की दृष्टि से भिन्न है तथा यह व्यक्तित्व उन्मुक्त एवं राष्ट्रपति की शैली वाला अभियान बन गया है : आठ सौ मिलियन भारतीयों के दिलो दिमाग पर फतह हासिल करना बी जे पी के चाय विक्रेता से राजनीतिक
स्टार में परिवर्तित नेता का उद्देश्य है, जो स्पष्ट रूप से भारत के सबसे अधिक समय तक राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं तथा कांग्रेस नीत गठबंधन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और इंजीनियर से भ्रष्टाचाररोधी जेहादी में परिवर्तित नेता जो विशेषाधिकार की पुरानी
राजनीति को बदलना चाहते हैं जो भारत की आजादी के इतिहास में लंबे समय से प्रचलन में रही है।
अपना वोट डालने के लिए कतार में प्रतीक्षा कर रहे लोग
चुनाव पर्यटन
हर तरह के व्यावसायिक जोश एवं उत्साह के साथ एकत्र होकर भारतीय चुनाव को फालो करने वाले पत्रकारों के बारे में समझना आसान है परंतु इस बार चुनाव पर्यटन की एक नयी विधा आकार ले रही है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के कुम्भ मेला के रूप में विख्यात पर्यटन उद्योग
के प्रबंधक एवं कार्यकर्ता विदेशी पर्यटकों को चुनाव पर आधारित हालीडे पैकेज की पेशकश कर रहे हैं। स्पष्ट रूप से उनकी यह रणनीति काम कर रही है: वाराणसी जो विश्व का सबसे पुराना महानगरीय शहर है, हजारों जिज्ञासु विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है जो यहां मुक्ति
की तैलाश में नहीं आ रहे हैं अपितु बी जे पी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी तथा आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल के बीच चुनावी संघर्ष का अनुभव करना चाहते हैं। चुनाव पर्यटन की एक नई ब्रीड के साथ अहमदाबाद एक अन्य पसंदीदा स्थल बन गया
है। अहमदाबाद आधारित टूर आपरेटर अर्थात इलैक्शन टूरिज्म इंडिया 12 मई को चुनाव के आखिरी चरण की समाप्ति तक अगले कुछ सप्ताह में लगभग 2000 विदेशियों को आकर्षित करने की उम्मीद कर रहा है।
क्या विदेश नीति में परिवर्तन होगा?
यद्यपि चुनाव के बाद गठित नई सरकार द्वारा संभावित नीति परिवर्तनों के बारे में अटकलों का बाजार गर्म है, भारत की विदेश नीति के संदर्भ में किसी आमूल परिवर्तन की उम्मीद नहीं है। यदि हम अपने अतीत को देखें तो कुल मिलाकर देश की विदेश नीति पर अलिखित राष्ट्र व्यापी
सर्वसम्मति मामूली सुधारों एवं संशोधनों के साथ स्थायी रूप से बनी हुई है। इस सर्वसम्मति में प्रबुद्ध राष्ट्रीय हित, पड़ोसी देशों एवं विस्तारित पड़ोस के साथ अच्छे संबंधों, सामरिक स्वायत्तता, प्रमुख महाशक्तियों एवं उभरती महाशक्तियों के साथ रचनात्मक
भागीदारी पर आधारित विदेश नीति का अनुसरण करना, कानून पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सीमा को बढ़ावा देना और नावाचारी एवं सिद्धांतों पर आधारित लोकतंत्र के माध्यम से देश के विकास के विकल्पों का विस्तार करना शामिल है। 16 मई को मतों की गणना तथा परिणामों की घोषणा के
बाद चाहे जो भी नई दिल्ली में सरकार का गठन करे, विश्व भारत की विश्व के साथ अनेक परतों पर आधारित संबंधों के प्रमुख क्षेत्रों में कुछ अनुमेयता एवं सततता की उम्मीद कर सकता है।
लोकतांत्रिक स्वप्न के रखवाले
ऐसे विश्व में जहां लोकतंत्र 3 बिलियन से अधिक लोगों के लिए आज भी दिवास्वप्न बना हुआ है, 6 से अधिक दशकों में सत्ता के शांतिपूर्ण अंतरण के प्रमाणित रिकार्ड के साथ भारतीय चुनाव का दर्शन एकाधिकारवाद के विरूद्ध प्रेरणाप्रद एवं बाध्यकारी दलील होना चाहिए। इस समय
तकनीकी दृष्टि से 100 से अधिक देशों में लोकतंत्र है क्योंकि अपने शासकों का चयन करने के लिए वे चुनाव का आयोजन करते हैं। अच्छी खबर यह है कि गुजरने वाले प्रत्येक वर्ष के साथ और देश लोकतंत्र के दायरे में शामिल होते जा रहे हैं तथापि दि इकानोमिस्ट इंटेलीजेंस
यूनिट की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 15 प्रतिशत देशों में पूर्ण लोकतंत्र है तथा विश्व के लगभग एक तिहाई देशों में एकाधिकारवादी व्यवस्थाओं का शासन है। इस पृष्ठभूमि में अपने शासकों का चयन करने के लिए मतदान करने वाले लाखों भारतीयों को देखना अनुकरणीय होना चाहिए।
इसके अलावा भयावह विविधता एवं कार्य की भयंकर विशालता के बावजूद भारत ने चुनाव उल्लेखनीय रूप से हिंसा या रक्तपात से मुक्त रहे हैं तथा विश्वसनीयता के पैमाने पर निरंतर अधिक अंक प्राप्त किया है।
अपना मत डालने से पूर्व अपनी अंगूली पर स्याही लगवाते हुए एक बुजुर्ग व्यक्ति
भारतीय स्याही
परंतु न्यायोचित ढंग से अर्जित अपनी लोकतांत्रिक विश्वसनीयता तथा समावेशी लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था में अपने स्थायी विश्वास के लिए भारत लोकतंत्र के निर्यात के कारोबार में नहीं है - जबरदस्ती लोकतंत्र थोपना सर्वसमावेशी भारतीय संस्कृति एवं लोकाचार के लिए
परकीया है। तथापि चुनावों के आयोजन में या लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण में सहायता प्रदान करने के लिए भारत हमेशा तत्पर रहा है, किंतु केवल अनुरोध करने पर। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हमारे देश का बहुत ही तर्कसंगत एवं जीवंत लोकतंत्र दुनिया भर के अनेक
देशों के लिए रोल माडल के रूप में उभरा है, जैसे कि एशिया में म्यांमार एवं नेपाल, उत्तरी अफ्रीका में मिस्र, लीबिया एवं ट्यूनिशिया। नए लोकतंत्र, विशेष रूप से अरब स्प्रिंग के बाद पैदा हुए लोकतंत्र अब प्रेरणा के लिए लोकतांत्रिक विकास के भारतीय माडल की ओर देख
रहे हैं। अफगानिस्थान से लेकर कंबोडिया तक भारत अमिट स्याही, इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन या चुनाव कार्य के संचालन में कार्मिकों को प्रशिक्षण देने के लिए पालिंग अधिकारी सहर्ष भेज रहा है। अमिट स्याही, जो लोकतांत्रिक सपनों का आधार है, जिसे भारत के दक्षिण शहर मैसूर
में तैयार किया जाता है, की स्थापित एवं स्थिर लोकतंत्रों द्वारा भारी पैमाने पर मांग की जा रही है। पिछले तीन दशकों में मैसूर पेंट एण्ड वार्निश लिमिटेड ने तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, नायजीरिया, नेपाल, घाना, पपूवा न्यू गुआना, बुर्किना फासो, कनाडा, टोगो, सीयरा
लियोन, मलेशिया एवं कंबोडिया सहित दुनिया भर के 28 देशों को स्याही का निर्यात किया है।
निकट भविष्य में, ऐसा प्रतीत होता है कि भारत विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र बन जाएगा – यह एक ऐसा सम्मान है जिसे चीन को प्रदान करके हम सभी उतना ही प्रसन्न होंगे, यदि चीन चुनावी लोकतंत्र का विकल्प चुनता है। और भारत में संसदीय चुनाव महत्वपूर्ण पर्व
तथा विश्व के लोकतांत्रिक सपनों के रखवाले बने रहेंगे।
(मनीष चंद इंडिया राइट्स अर्थात www.indiawrites.org के मुख्य सम्पादक हैं, जो एक ऑन लाइन पत्रिका एवं जर्नल है जो अंतरराष्ट्रीय मामलों तथा इंडिया स्टोरी पर केंद्रित है)
(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)