लेखक : राजीव शर्मा
भारत प्रगति पर है। भारत युवा है। भारत की साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि हो रही है और इसी प्रकार इंटरनेट, स्मार्ट फोन, डिजिटल मीडिया तथा सोशल मीडिया जैसे नवीनतम गैजेट के प्रयोग में भी वृद्धि हो रही है। ये सभी सनसनीखेज परिवर्तन भारत, जो इस धरती पर सबसे बड़ी
लोकतांत्रिक शक्ति में लोकतंत्र का विशालकाय नृत्य है, जिसमें 814 मिलियन मतदाता शामिल हैं, में चल रहे आम चुनाव में परिलक्षित हो रहे हैं।
टेलीविजन और प्रिंट मीडिया के माध्यम से विज्ञापन के अभियानों को भूल जाइए। कार रैली, आम सभा, होर्डिंग, बैनर, कार्नर मीटिंग, पदयात्रा तथा घर-घर अभियान को भूल जाइए। ये भी युवा भारतीय मतदाताओं के लिए प्रचार के बहुत परंपरागत एवं अव्यवस्था पैदा करने वाले - और इस
प्रकार उबाऊ हैं।
यह एक आधुनिक युग का भारत है। यह नए युग का आम चुनाव है। भारतीय चुनाव 2014 केवल
देश के कोने - कोने में तारकोल की सड़कों तथा धूल भरी सड़कों पर ही नहीं लड़ा जा रहा है। बैलट का इससे भी अधिक रोचक युद्ध साइबर स्पेस में तथा उत्तरोत्तर सशक्त सोशल मीडिया के माध्यम से लड़ा जा रहा है।
अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की जोड़ी ने देश को और पूरी दुनिया को सोशल मीडिया की शक्ति को प्रदर्शित किया था। हजारे के नेतृत्व में दबाव समूह ने 2011-12 में अपने असंख्य आंदोलनों की अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए सोशल मीडिया रूपी गाय का प्रभावी ढंग से
दोहन किया था। वास्तव में सभी राजनीतिक दलों ने उनसे सुराग प्राप्त किया तथा अब वे पहली बार सोलहवीं लोक सभा के लिए चल रहे चुनाव में पहली बार बहुत बड़े पैमाने पर इंटरनेट, मोबाइल फोन एवं सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं।
युवा भारतीय मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों एवं उनके
अभियान प्रबंधकों द्वारा फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब आदि का प्रयोग किया जा रहा है, जो कि पहले कभी नहीं होता था। यह मोबाइल फोन की सुविधा से लैस भारतीय युवा तक पहुंचने का स्मार्ट तरीका है। और क्यों नहीं, खासतौर से जब भारत युवा राष्ट्र हो जहां 66 प्रतिशत आबादी
35 साल से कम आयु की हो और लगभग 72 मिलियन भारतीय 18 से 23 साल की आयु के हों। कहने की जरूरत नहीं है कि भारतीय युवाओं का एक बड़ा प्रतिशत शिक्षित है तथा प्रौद्योगिकी विद है। कम से कम 93 मिलियन भारतीय फेसबुक पर हैं तथा 33 मिलियन ट्विटर पर हैं।
वे न केवल दिन में एक या दो बार इन सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं अपितु व्यावहारिक
तौर पर सेकेंड दर सेकेंड आधार पर वे अपने मोबाइल फोन का प्रयोग कर रहे हैं। अधिकाधिक संख्या में भारतीय युवा स्मार्ट फोन के प्रयोग में निपुण होते जा रहे हैं तथा 3जी एवं 4जी प्रौद्योगिकी का पूरा उपयोग कर रहे हैं। जी नहीं, यह ट्रेंड केवल युवाओं तक ही सीमित नहीं
है। ग्रामीण भारत के दादा - दादी को भी अपने निजी मोबाइल फोन को घमंड के साथ दिखाते हुए उत्तरोत्तर देखा जा रहा है। जो भी हो, भारत ऐसा देश है जहां मोबाइल फोन ओनर की संख्या मतदाताओं की कुल संख्या (814 मिलियन) से अधिक हो गई है।
100 मिलियन से अधिक भारतीय सोशल मीडिया के उत्साही प्रयोक्ता हैं। यह संख्या
तेजी से बढ़ रही है। जी एस एम संघ के अनुसार अक्टूबर, 2013 में भारत में मोबाइल फोन के लगभग 900 मिलियन कनेक्शन थे तथा सब्सक्राइबर की संख्या मात्र 350 मिलियन थी। इनमें से लगभग 31 मिलियन 3जी सब्सक्राइबर थे। 4जी सब्सक्राइबर की संख्या 2012 में 0.4 मिलियन थी।
अनुमान है कि आज की स्थिति के अनुसार 3जी एवं 4जी के कम से कम 100 मिलियन सब्सक्राइबर होंगे। इसके अलावा, भारत में 2008 से 2011 की अवधि के दौरान 69 मिलियन इंटरनेट प्रयोक्ताओं को जोड़ा जिससे 2011 के अंत तक इंटरनेट प्रयोक्ताओं की कुल संख्या 121 मिलियन हो गई
तथा कुल आबादी में इंटरनेट प्रयोक्ताओं को अनुपात 10 प्रतिशत के करीब पहुंच गया। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अपनी पार्टी लाइन एवं विचाराधाराओं से आगे निकलते हुए भारतीय राजनेता मतदाताओं तक पहुंचने के लिए सशक्त सोशल मीडिया का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग
कर रहे हैं। वे मतदाताओं को लुभाने के लिए अधिकाधिक मात्रा में फेसबुक की फीड, ट्वीट तथा यू-ट्यूब के वीडियों पर भरोसा कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, भारत के राजनेताओं में ट्विटर के क्रेज पर विचार कीजिए। भारतीय
जनता पार्टी के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी के ट्विटर पर सबसे अधिक संख्या में फालोअर (3.77 मिलियन) हैं, जिसके बाद आम आदमी पार्टी (आप) के नेता श्री अरविंद केजरीवाल (1.65 मिलियन) और प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह (1.18 मिलियन) का स्थान है।
ऐसे और भी नेता हैं जिनके फालोअर की संख्या मिलियन से अधिक है, जैसे कि कांग्रेस श्री शशि थरूर जिनके 2.15 मिलियन फालोअर हैं। भारत के राजनेताओं ने फेसबुक को भी बड़े पैमाने पर अपनाया है। उदाहरण के लिए, श्री नरेंद्र मोदी के 13 मिलियन ''सहमत’’ (फेसबुक की शब्दावली
में प्रशंसक) हैं, जिसके बाद श्री अरविंद केजरीवाल (5.2 मिलियन) का स्थान है। सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों के माध्यम से जिन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा एवं वाद - विवाद हो रहा है वे संप्रदाय बनाम धर्म निरपेक्षता, भ्रष्टाचार, पारदर्शिता, विकास, राजनीतिक नेताओं
की जवाबदेही, नौकरी एवं अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं। सोशल मीडिया के 100 मिलियन से थोड़े से अधिक प्रयोक्ताओं के साथ, यह अभी थोड़ा शुरूआती चरण है जहां भारत की राजनीति में सोशल मीडिया वास्तविक गेम चेंजर बन सकता है। परंतु लोक सभा की कुल 543 सीटों में से कम
से कम 160 सीटों के बारे में निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि ये सीटें ऐसी हैं जहां हार और जीत का अंतर 5 प्रतिशत से कम रहा है। इसके अलावा, इस तथ्य के बारे में बहुत कम जानकारी है कि लोक सभा के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या काफी है जहां ऐसे उम्मीदवार
विजयी होने में सफल हुए हैं जो बस केवल 30 प्रतिशत वोट खींचने में समर्थ हुए हैं। लोक सभा की दर्जनों सीटें ऐसी हैं जहां हार और जीत 5000 से भी कम वोटों के अंतर से होती है, तथा अक्सर यह अंतर तीन अंक और कभी – कभी तो दो अंक में होता है।
इस माह के शुरू में भारत सरकार द्वारा जारी की गई निर्वाचन संदर्भ पुस्तिका द्वारा
उजागर किए गए इन तथ्यों पर विचार करें। 2009 के आम चुनाव में लोक सभा की 543 सीटों में से कम से कम 54 सीटों पर दस हजार से कम वोटों के अंतर से जीत हुई थी। इनमें से 21 उम्मीदवारों ने 5000 से 10,000 वोटों के अंतर जीत दर्ज की थी, 27 उम्मीदवारों ने तो 1000 से 5000
वोटों के मामूली अंतर जीत दर्ज की थी और 6 उम्मीदवारों ने एक हजार से कम वोटों के अंतर से ही जीत दर्ज की थी। पिछले चुनाव में सबसे कम वोट से जो जीत हुई थी वह 317 वोट से हुई थी तथा भाग्यशाली उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी के श्री नमो नारायण मीणा थे जिन्होंने राजस्थान
के टोंक – सवाईमाधोपुर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के अपने पिछले निकटतम प्रतिद्वंद्वी को पराजित किया था। इन जैसी परिस्थितियों में जहां एक – एक वोट मायने रखता है, सोशल मीडिया की संभावित उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है। आने वाले वर्षों में भारत में सभी राजनीतिक
दलों के लिए सोशल मीडिया का एक प्रमुख स्विंग फैक्टर बनना तय है।
लेखक नई दिल्ली आधारित स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं जो @Kishkindha के नाम से ट्व्टि करते हैं।