राजदूत भास्वती मुखर्जी द्वारा*
पृष्ठभूमि :
भारत की सांस्कृतिक और सभ्यतापूर्ण विरासत को विश्व विरासत समिति की विश्व विरासत सूची में प्रदर्शित किया गया है परंतु इसे बेहतर ढंग से एवं पूर्ण रूप से प्रदर्शित नहीं किया गया है। वहां सांस्कृतिक स्थलों पर अधिक जोर दिया गया है जबकि प्राकृतिक मिश्रित स्थलों
को पूर्णत: नहीं दर्शाया गया है। प्राचीन यूरोप शहर विश्व के बहुत से भूभागों में यह प्रक्रिया जारी है, जहां विश्व विरासत सूची में यूरोप की महान सांस्कृतिक विरासत को ही विशेष रूप से दर्शाया गया है। प्राकृतिक विरासत, चाहे वह भारत में हो अथवा यूरोप में, उसका
प्रतिनिधित्व पर्याप्त मात्रा में नहीं गया।
ताजमहलताजमहल, के बारे में मौजूदा असंतुलन का प्रमुख कारण नामांकन
और शिलालेख की प्रक्रिया के कारण है, जिसे विश्व विरासत परिपाटी के प्रचालनात्मक दिशानिर्देशों में सावधानीपूर्वक दर्शाया गया है। शायद ऐसा हो सकता है कि यह एक मूर्त विरासत है क्योंकि यह ताजमहल जैसे अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों और भवनों का प्रतिनिधित्व करता
है और प्राकृतिक तथा मिश्रित स्थलों की तुलना में शिलालेख के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार अपना औचित्य स्थापित करता है। मैं इसका एक उदाहरण बाद में बताऊँगा, परंतु हमें पहले परिपाटी और शिलालेख प्रक्रिया की जांच करनी चाहिए।
विश्व विरासत परिपाटी :
1972 में अपनायी गई परिपाटी विश्व विरासत की रक्षा के एक उल्लेखनीय और दूरदर्शी लिखत के रूप में सिद्ध हुई है। इसे यूनेस्को के फ्लैगशिप कार्यक्रम के रूप में डब किया गया है और इसने संरक्षण के लिए परिपाटियों, लिखतों और कार्यक्रमों के मानक निर्धारित किए हैं। इसका
सचिवालय, जिसे विश्व विरासत केंद्र के रूप में जाना जाता है, के अध्यक्ष 1976 बैच के भारतीय वन सेवा के एक ख्यातिलब्ध भारतीय श्री किशोर राय हैं, जो प्राकृतिक विरासत के भी विशेषज्ञ हैं।
कोर्णाक का सूर्य मंदिर कोर्णाक का सूर्य मंदिर – वर्तमान में
विश्व विरासत नक्शे में संपूर्ण विश्व को शामिल किया गया है। इससे ऐसी अद्वितीय एवं वैश्विक स्तर पर मूल्यवान संपत्तियों की रक्षा करने और उन्हें उचित मान्यता प्रदान करने में सहायता प्राप्त हुई है जिनके न होने से न केवल संबंधित देश बल्कि स्वयं मानवता के
लिए एक अपूर्णीय क्षति होगी। शायद इस परिपाटी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसके फलस्वरूप विश्व की मूल्यवान अंतर्राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करने और उसे बनाए रखने की आवश्यकता के प्रति लोगों के बीच जागरूकता बढ़ी है क्योंकि यदि विरासत हमारे सामान्य इतिहास
का साक्षी होता है, तो इसकी रक्षा के प्रति जागरूकता हमारे सामूहिक भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और अपने पर्यावरण की रक्षा के प्रति हमारी चिंता को दर्शाती है।
विश्व विरासत सूची में संपत्तियों के शिलालेख से संबंधित प्रचालनात्मक दिशानिर्देश :
नामांकन डोजियर तैयार करना शिलालेख प्रक्रिया का एक केंद्रीय कार्य है। कारोबार के मौजूदा नियमों के अनुसार सचिव (संस्कृति) के संपूर्ण पर्यवेक्षण में अपने महानिदेशक की अध्यक्षता में भारतीय भू-सर्वेक्षण नामक संगठन भारत में बड़ी संख्या में मौजूदा ऐसे सभी स्थलों
के चयन की राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील प्रक्रिया सहित इस दिशा में कार्य करता है जिनके शिलालेख की आवश्यकता है। भारतीय राजदूत / यूनेस्को के पी आर इस प्रक्रिया में सलाहकार की भूमिका अदा करते हैं और यूनेस्को के पी आर विश्व विरासत समिति में भारत के सदस्य के
रूप में शामिल होते हैं, जो शिलालेख के लिए समिति के बीच पृष्ठभूमि में जारी जटिल और दुर्भाग्यपूर्ण अत्यंत राजनीतिक प्रक्रिया वाली बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
यूनेस्को में भारत के राजदूत के रूप में और 4 सितंबर से 10 जून तक विश्व विरासत समिति में भारत का प्रतिनिधि होने के नाते अपने अनुभव के अनुसार मैं इसके कुछ उदाहरण बाद में दूँगा।
भारत के पर्वतीय रेलवेभारत के पर्वतीय रेलवे – राज्य के दलों
को विश्व विरासत सूची में शिलालेख के लिए अपनी किसी संपत्ति का नामांकन तैयार करने से पहले नामांकन चक्र के बारे में जानकारी कर लेनी चाहिए। आरंभ में यह स्थापित करने के लिए अपेक्षित है कि पूर्ण नामांकन डोजियर तैयार करने से पहले सत्यनिष्ठा अथवा प्राधिकार सहित
उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व का औचित्य स्थापित करने की क्षमता उस संपत्ति में होनी चाहिए।
राजकीय दलों को स्थल प्रबंधकों, स्थानीय और क्षेत्रीय सरकारों, स्थानीय समितियों, गैर सरकारी संगठनों (एन जी ओ) और अन्य इच्छुक पक्षकारों सहित बहुत से पणधारकों की प्रतिभागिता से नामांकन तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
राजकीय दलों को मसौदा नामांकन के लिए आगामी वर्ष के 30 सितंबर तक सचिवालय को अपना नामांकन प्रस्तुत करने के लिए दृढ़तापूर्वक प्रोत्साहित किया जाता है जिन्हें वे 1 फरवरी की अंतिम समय सीमा तक प्रस्तुत करना चाहते हैं। मसौदा नामांकन के साथ प्रस्तावित स्थल की
सीमाओं को दर्शाने वाले नक्शे भी शामिल होने चाहिए।
सांचीसांची – नामांकन वर्ष के दौरान किसी भी समय प्रस्तुत किए
जा सकते हैं, परंतु केवल उन्हीं नामांकनों पर आगामी वर्ष के दौरान विश्व विरासत समिति द्वारा विश्व विरासत सूची में शिलालेख के लिए विचार किया जाएगा जो पूर्ण हैं, और 1 फरवरी को या उससे पहले सचिवालय में प्राप्त हो गए हैं। केवल ऐसी संपत्तियों के नामांकन की समिति
द्वारा जांच की जाएगी जो राजकीय दल की संभावित सूची में शामिल हैं। विश्व विरासत सूची में शिलालेख के लिए संपत्तियों के नामांकन निर्धारित प्रपत्र के अनुसार तैयार किए जाने चाहिए।
नामांकन प्रपत्र में निम्नलिखित भाग शामिल हैं:
- संपत्ति की पहचान
- संपत्ति का विवरण
- शिलालेख का औचित्य
- संपत्ति के संरक्षण की स्थिति और उसे प्रभावित करने वाले घटक
- संरक्षण एवं प्रबंधन
- निगरानी
- प्रलेखन
- जिम्मेदार प्राधिकारियों की संपर्क सूचना
- राजकीय दल (दलों) की ओर से हस्ताक्षर
किसी नामांकन को पूर्ण माने जाने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताओं को नोट किया जाए:
- संपत्ति की पहचान
प्रस्तावित संपत्ति की सीमाएं स्पष्ट रूप से परिभाषित की जानी चाहिए, जिसमें नामित संपत्ति और आस-पास के क्षेत्र को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया हो।
- संपत्ति का विवरण
संपत्ति के विवरण में संपत्ति की पहचान और इसके ऐतिहासिक तथ्यों और विकास के बारे में जानकारी शामिल होनी चाहिए।
- शिलालेख का औचित्य
इस भाग के अंतर्गत ऐसे विश्व विरासत मानदंडों को दर्शाया जाना चाहिए जिनके अंतर्गत संपत्ति को इस सूची में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है, साथ ही प्रत्येक मानदंड के इस्तेमाल हेतु स्पष्ट रूप से तर्क दिए जाने चाहिए। मानदंडों के आधार पर राजकीय दल द्वारा
तैयार की गई संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व के प्रस्तावित विवरण में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए कि इस संपत्ति को विश्व विरासत सूची में किस प्राथमिकता के साथ शिलालेख हेतु विचार किया जाना चाहिए। समान संपत्तियों के संबंध में इस
संपत्ति का एक तुलनात्मक विश्लेषण भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए, चाहे वे विश्व विरासत सूची में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर शामिल हों अथवा न हों। तुलनात्मक विश्लेषण में नामित संपत्ति का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में महत्व स्पष्ट
किया जाना चाहिए। सत्यनिष्ठा और/या प्राधिकार के संबंध में भी एक विवरण दिया जाना चाहिए।
- संपत्ति के संरक्षण की स्थिति और उसे प्रभावित करने वाले घटक
इस भाग में संपत्ति के संरक्षण के वर्तमान स्थिति के बारे में वास्तविक सूचना (संपत्ति की भौतिक स्थिति और इसके संरक्षण के लिए लागू किए गए उपायों से संबंधित सूचना सहित) दी जानी चाहिए। इसमें संपत्ति को प्रभावित करने वाले घटकों (चेतावनियों सहित) का भी विवरण दिया
जाना चाहिए।
विभिन्न प्रकार की संपत्तियों के नामांकन हेतु आवश्यकताएं
सीमा पार संपत्तियां
कोई भी नामित संपत्ति निम्नलिखित के अधिकार क्षेत्र में हो सकती है :
(क) एकल राजकीय दल के अधिकार क्षेत्र में, अथवा
(ख) सटी हुई सीमाओं वाली सभी संबंधित राजकीय दलों के अधिकार क्षेत्र में (सीमा पार संपत्तियां)
क्रमिक संपत्तियां
क्रमिक संपत्तियों में दो अथवा अधिक संघटक भाग शामिल होंगे जो स्पष्ट रूप से परिभाषित संपर्क द्वारा जुड़े होंगे:
(क) संघटक भागों में सांस्कृतिक, सामाजिक अथवा समय के साथ प्रकार्यात्मक संपर्कों को दर्शाया जाना चाहिए जिनमें संगत, दृष्टिगोचर, पारिस्थितिकीय, प्रादुर्भावपूर्ण अथवा अप्रवासीय संपर्क की जानकारी दी गई है।
(ख) प्रत्येक संघटक भाग में संपूर्ण रूप से संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व को दर्शाया जाना चाहिए।
कोई क्रमिक नामित संपत्ति निम्नलिखित के अधिकार क्षेत्र में हो सकती है:
(क) किसी एकल राजकीय दल के अधिकार क्षेत्र में (क्रमिक राष्ट्रीय संपत्ति); अथवा
(ख) विभिन्न राजकीय दलों के अधिकार क्षेत्र में, जिनके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे सीमावर्ती हैं और जिन्हें सभी संबंधित राजकीय दलों की सहमति से नामित किया गया है (क्रमिक सीमा पार संपत्ति)
सलाहकार निकायों द्वारा नामांकनों का मूल्यांकन
सलाहकार निकाय इस बात का मूल्यांकन करेंगे कि राजकीय दलों द्वारा नामित संपत्तियों का उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व है अथवा नहीं, क्या वे सत्यनिष्ठा और/या प्राधिकार संबंधी शर्तों को पूरा करती हैं और संरक्षण तथा प्रबंधन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं या
नहीं।
सांस्कृतिक विरासत संबंधी नामांकनों का मूल्यांकन आई सी ओ एम ओ एस द्वारा किया जाएगा।
प्राकृतिक विरासत संबंधी नामांकनों का मूल्यांकन आई यू सी एन द्वारा किया जाएगा।
यथा उपयुक्त ‘सांस्कृतिक भू-दृश्य’ की श्रेणी में आने वाली सांस्कृतिक संपत्तियों के मामले में इनका मूल्यांकन आई यू सी एन के परामर्श से आई सी ओ एम ओ एस द्वारा किया जाएगा। मिश्रित संपत्तियों का मूल्यांकन आई सी ओ एम ओ एस और आई यू सी एन द्वारा संयुक्त रूप
से किया जाएगा।
मूल्यांकन और उपसंहार :
ऊपर दर्शाए गए तथ्यों से यह पता चलता है कि विश्व विरासत सूची में शिलालेख एक समयबद्ध प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत समिति के समक्ष वास्तविक रूप से मामले की प्रस्तुति के लिए संबंधित सलाहकार निकाय चाहे वह आई सी ओ एम ओ एस हो अथवा आई यू सी एन हो, के साथ चर्चा और
सहभागिता के लिए प्रस्तावित स्थल की प्रवीणता के संबंध में समिति के अन्य सदस्यों की सक्रिय लॉबीइंग हेतु संभावित सूची में शिलालेख से लेकर ‘नामांकन डोजि़यर’ तैयार करने के लिए प्रचालनात्मक दिशानिर्देशों में बतायी गई सभी प्रक्रियाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
कभी कभी कोई नामांकन समिति के सदस्यों के बीच सांस्कृतिक मतभेद अथवा संबंधित सलाहकार निकाय द्वारा एकपक्षीय प्रस्तुति के कारण विफल हो सकते हैं। मुझे स्मरण हो रहा है कि असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर मजुली द्वीप, जो बेल्जियम की तुलना में बड़ा द्वीप है, के मामले
में भारत की शिवाते विरासत का प्रतीक एक उत्कृष्ट सांस्कृतिक दर्शनीय स्थल के रूप में अपना डोजियर प्रस्तुत करने के लिए हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद भी संबंधित सलाहकार निकाय के प्रतिनिधि ने केवल जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया और
यह तर्क दिया कि मजुली द्वीप का उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व ब्रह्मपुत्र नदी की धारा परिवर्तन के कारण समाप्त हो जाएगा। इस संबंध में सांस्कृतिक मुद्दों को अपेक्षाकृत कम महत्व दिया गया और असम में पहली बार इसके शिलालेख पर प्रभाव पड़ा, साथ ही इसके भावी अस्तित्व
और संरक्षण पर भी प्रश्न चिह्न लगाए गए। अंतिम रूप से दुर्भाग्यवश समिति में ऐसी घटनाएं प्राय: देखने को मिलती हैं और यह भारत के विरूद्ध मत देने वाले पश्चिमी देशों के नितांत राजनीतिक मत का शिकार हो गया। हम बहुत ही कम से अंतर हार गए (क्यूबेक, कनाडा में आयोजित
डब्ल्यू एच सी की बैठक संदर्भ ग्रहण करें)।
अजंता की गुफाएंअजंता की गुफाएं – हालांकि यह एक ऐसा उदाहरण है
जहां सलाहकार निकाय द्वारा प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद भी हम अपना पक्ष रखने में सफल रहे, इस मामले में हमारी प्रतिस्पर्धा मारीशस में ऐतिहासिक अप्रवासी घाट के साथ थी, जिसके तहत आपसी समझौते के आधार पर भारत के मारीशस का मार्ग खोजा गया। यद्यपि सलाहकार निकाय के प्रतिनिधियों
ने ऐसे तर्क देने का प्रयास किया कि समझौते के आधार पर ऐसा कोई मार्ग नहीं खोजा गया है और ये भारतीय अप्रवास के जरिए बेहतर भविष्य प्राप्त करने के लिए लालायित हैं, फिर भी भारत समिति के सदस्यों के साथ मारीशस के इस मामले को अपने पक्ष में रखने में कामयाब रहा और
इस बात को लेकर आम राय बनी कि अप्रवासी घाट के लिए समझौते के आधार पर श्रमिकों के पैकेज की तुलना आधुनिक अप्रवास से नहीं की जा सकती है क्योंकि हम इसे समझते हैं और इसका ओ यू वी भी यथावत था। इसके अलावा, इस संबंध में हमने विश्व के समक्ष दास मार्ग की तरह महत्वपूर्ण
ऐतिहासिक यादगार का प्रतिनिधित्व किया। सलाहकार निकाय द्वारा प्रतिरोध के बावजूद भी इस स्थल का भारत और मॉरीशस के लिए एक महान विजय का प्रतिनिधित्व करने वाली जयघोष के साथ शिलालेख किया गया।
(विल्नियस, लिथोनिया में आयोजित डब्ल्यू एच सी की बैठक संदर्भ ग्रहण करें)।
बोध गया में स्थापित महाबोधि मंदिरबोध गया में स्थापित महाबोधि
मंदिर – यदि हमारा यह मानना है कि बोध गया स्थित महाबोधि मंदिर का ओ यू बी महत्व है, तो मुझे शिलालेख की प्रक्रिया को समझने और हमारे मामले की प्रवीणताओं को समिति के सदस्यों द्वारा समझने पर जोर देते हुए अपनी बात रखनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि; ''हमारी
मातृभूमि अपनी दीर्घकालिक निद्रा से जाग रही है। भारत जो भारत का असली भविष्य है, इसे प्राचीन भारत की तुलना में अधिक महान होना चाहिए।'' इस विरासत के भविष्य और वर्तमान की महानता को प्रदर्शित करने के लिए हमें नामांकन प्रक्रिया के बारे में पूरी तरह से जागरूक होना
चाहिए और हमें उसकी बेहतर जानकारी हो क्योंकि प्रक्रिया ही अपने आप में बहुत जटिल, समय लेने वाली है और प्राय: लोग इसे सही परिप्रेक्ष्य में नहीं समझ पाते हैं और निराशा का भाव पैदा हो जाता है।
* (राजदूत भास्वती मुखर्जी ने वर्ष 2004 से 2010 तक यूनेस्को के लिए भारत के स्थायी सदस्य के रूप में कार्य किया है)