लेखक : मनीष चंद
नई दिल्ली में नई सरकार बनने के बाद भारत और अमरीका इस सप्ताह अपना प्रथम कूटनीतिक संवाद करने जा रहे हैं और इसके साथ ही ‘‘इक्कीसवीं सदी की दिशा-निर्धारक भागीदारी’’ की नई शुरूआत होने जा रही है। जब 31 जुलाई को नई दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और सेक्रेटरी
ऑफ स्टेट जॉन केरी संपूर्ण परिदृश्य पर वार्ता करेंगे, तब उनका मुख्य ध्यान उन रिश्तों को, जिनमें कुछ लोगों को 2008 की परिवर्तनकारी सिविल न्यूक्लियर डील तक आने के बाद प्राय: स्थिरता आई नजर आती है, पुन: ऊर्जस्वित करने और भागीदारी के नए मोर्चों की तलाश
करने पर होगा।
विदेश मंत्री स्तरीय कूटनीतिक संवाद भारत-अमरीका संबंधों की उस जटिल संरचना का भाग हैं जिसमें विविध क्षेत्रों के 30 से अधिक अलग-अलग संवाद कार्यतंत्र शामिल हैं। यह कूटनीतिक संवाद जुलाई 2009 में शुरू हुआ था और यह पांच स्तंभों पर ध्यान देता है: ।) कूटनीतिक सहयोग,
।।) ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन, शिक्षा एवं विकास, ।।।) अर्थव्यवस्था, व्यापार एवं कृषि, IV) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, V) स्वास्थ्य एवं नवाचार। प्रथम कूटनीतिक संवाद जून 2010 में वाशिंगटन डीसी में आयोजित हुआ था, तत्पश्चात् नई दिल्ली (जुलाई 2011), वाशिंगटन
डीसी (जून 2012) और नई दिल्ली (जून 2013) में परवर्ती दौर के संवाद हुए। कूटनीतिक संवाद भारत और अमरीका की राजधानियों में बारी-बारी से होते रहे हैं, परंतु 2014 का संवाद अपवाद है, जो लगातार दूसरे वर्ष नई दिल्ली में हो रहा है।
यूएस विदेश मंत्री जॉन केरी तत्कालीन विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद के
साथ नई दिल्ली में (जून, 2013)
नवीन यथार्थवाद
व्यवसाय को बढ़ावा देने वाले एक प्रधान मंत्री के विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र और एशिया की तीसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का कार्य भार संभालते ही दिल्ली में सत्ता परिवर्तन होने के बाद वाशिंगटन से यथार्थपरक एवं सकारात्मक संदेश प्राप्त होते रहे हैं। 16 मई
को भारत के संसदीय चुनावों के परिणाम घोषित होने के मात्र कुछ घंटे बाद अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने श्री मोदी को उनकी पार्टी की ‘ऐतिहासिक विजय’ पर तुरंत बधाई दी और उन्हें वाशिंगटन आने का न्यौता दिया। श्री ओबामा ने अर्थपूर्ण ढंग से उम्मीद जताई कि वह ‘‘भारत-अमरीका
कूटनीतिक भागीदारी के असाधारण वायदे को पूरा करने के लिए’’ श्री मोदी के साथ मिल कर काम करेंगे। कुछ दिन बाद, 28 मई को सुषमा स्वराज के भारत की विदेश मंत्री के रूप में शपथ लेने पर श्री जॉन केरी उन्हें कॉल करके बधाई देने वाले प्रथम विदेश मंत्री बने। सेक्रेटरी
केरी ने भारत-अमरीका संबंधों को पुन: ऊर्जस्वित करने के बारे में उत्साह से बात की और उम्मीद जताई कि दोनों देश 100 बिलियन यूएस डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को पांच गुणा बढ़ाकर 500 बिलियन यूएस डॉलर कर सकते हैं। यह शुरूआत से ही व्यावसायिक बात थी- और यह एक नया
परिवर्तन है जो आने वाले दिनों में भारत-अमरीका संबंधों को नया स्वरूप प्रदान करेगा।
अर्थव्यवस्था अहम है, बुद्धू!
आर्थिक संबंधों को विस्तार प्रदान करना नई दिल्ली में कूटनीतिक संवाद के पांचवें दौर की बैठक की मुख्य विषय-वस्तु होगी, जो सितंबर में वाशिंगटन में राष्ट्रपति ओबामा के साथ प्रधान मंत्री की शिखर बैठक के लिए आधार तैयार करेगी। आर्थिक मामलों में संबंधों की कोई
सीमा नहीं होती। आईपीआर जैसे जटिल ट्रेड संबंधी अनेक मुद्दे हैं, जो अलग-अलग अवधारणाओं में अटके हुए हैं, परंतु नई भारत सरकार के महत्वाकांक्षी आर्थिक सुधारों के साथ आगे बढ़ने की राजनीतिक इच्छा-शक्ति प्रदर्शित करने के साथ इंडिया स्टोरी के बारे में अमरीकी व्यवसाय
और औद्योगिक निकायों के बीच उत्साह में वृद्धि देखी जा सकती है। बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 49 प्रतिशत तक बढ़ाने और रक्षा क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोलने के निर्णय नया मार्ग दिखाने वाले कदम हैं जिनसे आने वाले दिनों में अमरीकी निवेशों
में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। जीवन रक्षक जेनरिक औषधियों पर आईपीआर प्रणाली के अनुप्रयोग तथा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी व्यावसायिकों के लिए वीजा शुल्क के संबंध में भारत के हितों और सरोकारों के प्रति अमरीकी प्रशासन को भी अपनी तरफ से लचीलापन और दूरदर्शिता दिखानी
होगी।
मोदी सरकार द्वारा 100 स्मार्ट शहरों का निर्माण किए जाने तथा भारत को एशिया का विनिर्माण एवं व्यापारिक केंद्र बनाने की अपनी योजना की घोषणा किए जाने के साथ ही, निवेशों में वृद्धि की विशाल संभावना पैदा हुई है। द्विपक्षीय निवेश संधि के लिए बातचीत में तेजी लाने
से स्थिति में बदलाव हो सकता है। अमरीका भारत में पांचवां सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्रोत है, जहां से अप्रैल 2000 से मार्च 2014 तक भारत में लगभग 11.92 बिलियन यूएस डॉलर की राशि का संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। और यह कोई एक तरफा निवेश नहीं
है: भारतीय कंपनियों ने विगत कुछ वर्षों में अमरीका में 17 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के उप राष्ट्रपति श्री जोसेफ आर.
बाइडन जूनियर लोक सभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज के साथ नई दिल्ली में बैठक करते हुए (जुलाई, 2013)
परमाणु ऊर्जा का प्रवाह होगा ...
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अंतर्गत प्रथम भारत-अमरीका संवाद परमाणु समझौते की चौसर बिछाने का भी सही समय होगा। आसान शब्दों में कहें तो, दोनों पक्ष उस युगांतरकारी सिविल न्यूक्लियर डील को निष्पादित करने के लिए
अपनी ऊर्जा को केंद्रित करेंगे जिसने अब तक अलग-थलग रहे दो प्रजातंत्रों के बीच के रिश्ते को को परस्पर भागीदार प्रजातंत्रों का रिश्ता बना दिया। परमाणु पुनर्मेल 2005 के ग्रीष्मकाल में शुरू हुआ था और समझौते पर हस्ताक्षर 2008 में हुए थे। छह वर्ष बाद, अब अमरीका
द्वारा निर्मित एक रिएक्टर से भारत में बिजली प्रवाहित होने का समय आ गया है। इस संदर्भ में, गुजरात में एक परमाणु ऊर्जा परियोजना के लिए सितंबर 2013 में भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) और वेस्टिंगहाउस के बीच आरंभिक संविदा पर हस्ताक्षर होना इस
समझौते के भविष्य की ओर भली-भांति इशारा करता है, जो भारत की परमाणु ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा श्रीमती
सुषमा स्वराज के साथ नई दिल्ली में (नवंबर, 2010)
रक्षा संबंधों को बढ़ावा
परमाणु समझौते के अलावा, रक्षा सहयोग में बढ़ोतरी भारत-अमरीका संबंधों में आ रहे बदलाव का उदाहरण है। 2005 में ‘भारत-अमरीका रक्षा संबंधों की नई रूपरेखा’ पर हस्ताक्षर होने से रक्षा व्यापार तथा संयुक्त कार्रवाइयों, कार्मिकों के आदान-प्रदान, तटीय सुरक्षा में सहयोग
तथा सहायता और जल दस्युता के विरूद्ध लड़ने, और तीनों सेवाओं में प्रत्येक के बीच आदान-प्रदान में वृद्धि हुई है। उच्च स्तरीय सैन्य हार्डवेयर का आयात 10 बिलियन डॉलर को पार कर गया है। सितंबर 2013 में, दोनों पक्षों ने रक्षा सहयोग संबंधी संयुक्त घोषणा करते
हुए एक और दिशा-निर्धारक कदम उठाया है, जिसमें तकनीकी आदान-प्रदान नीतियों को सरल बना कर रक्षा संबंधों में गुणात्मक सुधार लाने तथा रक्षा प्रणालियों का मिलकर विकास करने तथा मिलकर उत्पादन करने की संभावनाएं तलाश करने की परिकल्पना की गई है।
कूटनीतिक संपर्क
अंत में, जब दुनिया में उतार-चढ़ाव हो रहे हैं और अफ्रीका से लेकर अफगानिस्तान तक अस्थिरता फैली हुई है, कूटनीतिक संवाद के पांचवें चरण में ज्वलंत क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों के व्यापक परिदृश्य पर गहन मंथन किया जाएगा, जिनमें अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक और
मध्य-पूर्व की विस्फोटक स्थिति शामिल है। 2014 के बाद के अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण बदलाव सुनिश्चित करना तथा अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र में आतंक के मौजूदा अभयारण्यों के कारण दोनों देश इस हिंसा संभावित देश में शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देने के
लिए मिल कर काम करने के लिए प्रेरित होंगे। अंतर-राष्ट्रीय इस्लामिक आतंकी नेटवर्कों द्वारा पेश किए गए खतरे भी, जैसे कि ईराक में आईएसआईएस द्वारा किए गए हैं, दोनों पक्षों को आतंकवाद से लड़ने में सहयोग करने के कदम उठाने के लिए प्रेरित करेंगे। दोनों प्रजातंत्र
एक समावेशी पूर्वी एशियाई संरचना का निर्माण करने तथा इस क्षेत्र में तटीय सुरक्षा को बढ़ावा देने की भी उम्मीद कर सकते हैं।
(संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत डा. एस. जयशंकर)
विचार, पहल और नवाचार
भारत-अमरीका संबंधों के चित्रपट में वस्तुत: सब कुछ शामिल है, परंतु जो बातें इस रिश्ते को खास स्वरूप प्रदान करती है वे हैं लोगों से प्रेरित भागीदारी और शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा तथा जन स्वास्थ्य, जो आम लोगों के जीवन को प्रत्यक्ष
रूप से प्रभावित करते हैं।
भारत-अमरीका संबंधों को बनाने के लिए ब्लॉकबस्टर हैडलाइनों के लिए अधीर रहने वाले रोमानी थोड़े निराश हो सकते हैं, परंतु भविष्य की कार्रवाई वैचारिक यथार्थ में होगी और मिलकर जीवन बदल देने वाली प्रौद्योगिकियों तथा नवाचारों का एक नया पारिस्थितिकीय तंत्र सृजित
करेंगी। इस ग्रीष्म में, अमरीका में भारत के राजदूत एस. जयशंकर ने हार्वर्ड केनेडी स्कूल में ‘भारत और अमरीका: एक दूरदृष्टि’ विषय पर दिए एक यादगार भाषण में आदर्श-प्रेरित उद्यम का विचार प्रस्तुत किया है जो विश्व के सबसे बड़े बहु-धार्मिक धर्म निरपेक्ष प्रजातंत्रों
के बीच कूटनीतिक भागीदारी को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा है, ‘‘इनमें से कई पहलें भारत को, हमारे रिश्तों को और संभवत: वृहत्तर विश्व को बदल सकती हैं। एक क्षण के लिए इस बात पर विचार करें, हमारे जैव प्राद्योगिकीविद् मिलकर दुनियाकी सबसे सस्ती वैक्सीन का
उत्पादन कर रहे हैं। ऐसी संयुक्त परियोजनाएं बनाई जा रही हैं जो सौर प्रशीतन को भारतीय गांवों तक ले जाएंगी और प्रकाश ऊर्जा यंत्र-फलक की कार्यक्षमता में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगी। इसी प्रकार कैंसर उपचार से लेकर मोतियाबिंद के निदान तक के सार्वजनिक स्वास्थ्य
कार्यक्रम हैं।’’
महान अमरीकी स्वप्न, जिसका अभिप्राय है अपना भाग्य स्वयं बनाना, विश्व में अपना स्थान बनाने के भारतीय स्वप्न से अनायास ही मिल गया है, जब एक बिलियन से अधिक भारतीय इस समय अपने बेहतर जीवन का निर्माण करने की कोशिश में लगे हुए हैं। विभिन्न अमरीकी विश्वविद्यालयों
में पढ़ रहे 100,000 से अधिक भारतीय, अमरीकी और भारतीय स्वप्नों के गुम्फित होने का उदाहरण हैं।
अमरीका में 3 मिलियन का मजबूत भारतीय समुदाय, जो सर्वाधिक सुशिक्षित और संपन्न प्रवासी हैं, दुनिया के दो सबसे बड़े प्रजातंत्रों के बीच सशक्त संपर्क साधक और सेतु निर्माता बने हुए हैं जो अपनी अपनाई हुई मातृभूमि में सफलता की नई कहानियां लिख रहे हैं।
सरकारें आती-जाती रहती हैं, परंतु दोनों देशों की जनता यह सुनिश्चित करेगी कि विचार, पहल और नवाचार के साथ एक दूसरे के समाज और सिस्टम को पुनर्जीवित करते हुए तथा राष्ट्रपति ओबामा द्वारा कथित प्रसिद्ध ‘‘21वीं सदी की दिशा-निर्धारक भागीदारी’’ के ‘‘असाधारण वायदे’’
को पूरा करते हुए, भारत और अमरीका घनिष्ठता से जुड़े हुए प्रजातंत्र बने रहें।
(मनीष चंद अंतरराष्ट्रीय मामलों पर केंद्रित एक वेब पोर्टल और ई-पत्रिका इंडिया राइट्स नेटवर्क,www.indiawrites.org, तथा इंडिया स्टोरी के मुख्य संपादक हैं। twitter@scepticcryptic
पर उनका अनुसरण करें).
इस लेख में अभिव्यक्त विचार लेखक के स्वयं के विचार हैं।
संदर्भ :
वाशिंगटन डीसी में राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ प्रधान मंत्री की शिखर बैठक
पर संयुक्त वक्तव्य (27 सितंबर, 2013)
चतुर्थ भारत-अमरीका संवाद पर संयुक्त वक्तव्य
18 जुलाई, 2005 को भारत-अमरीका का संयुक्त वक्तव्य:
एक वर्ष बाद
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