भारत – म्यांमार संबंधों का पारा ऊपर उठाना
(नाय पी ताव, म्यांमार में चौथी पूर्वी एशिया शिखर बैठक की विदेश मंत्री बैठक में विदेश मंत्री)भारत
में नई सरकार की ''पड़ोसी पहलें’’ की नीति फिर से द्विपक्षीय वार्ता के लिए और साथ ही आसियान, पूर्वी एशिया शिखर बैठक तथा आसियान क्षेत्रीय मंच से जुड़ी मंत्री स्तरीय बैठकों में भाग लेने के लिए 8 से 11 अगस्त, 2014 तक भारत की विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज
की पहली म्यांमार यात्रा के साथ चर्चा में है। म्यांमार दक्षिण पूर्व एशिया का ऐसा पहला देश है जिसका दौरा श्रीमती सुषमा स्वराज दक्षिण एशिया के तीन महत्वपूर्ण पड़ोसियों अर्थात भूटान, बंग्लादेश और नेपाल की अपनी यात्रा के बाद कर रही हैं। विदेश मंत्री की यह
यात्रा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल की पथ प्रदर्शक यात्रा के ठीक बाद हो रही है और भारत की विदेश नीति के संदर्भ में सन्निकट एवं विस्तारित पड़ोस की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करती है।
म्यांमार को मायने रखता है : 5बी

दक्षिण एशिया एवं दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सेतु के रूप में म्यांमार ने भारत के राजनयिक
क्षेत्र को बहुत ज्यादा आकर्षित किया है। व्यवसाय, संस्कृति एवं राजनय के मिश्रण की दृष्टि से दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध है। बौद्ध धर्म, व्यवसाय, बॉलीवुड, भरत नाट्यम और बर्मा का टीक – ये 5 बी हैं जो आम जनता की दृष्टि से भारत - म्यांमार संबंध का निर्माण
करते हैं। इस समृद्ध कंफिगरेशन से आगे बढ़कर संबंध अब अधिक आर्थिक महत्व एवं सामरिक अभिमुखीकरण प्राप्त कर रहे हैं।
नई दिल्ली में दोनों देशों के बीच विदेश कार्यालय परामर्श के कुछ दिन बाद विदेश मंत्री की म्यांमार यात्रा हो रही है जिसके दौरान दोनों पक्ष द्विपक्षीय मुद्दों के संपूर्ण आयाम पर चर्चा करेंगे जिसमें व्यापार एवं निवेश, ऊर्जा एवं विकास सहयोग शामिल है। म्यांमार
की नई राजधानी नाय पी ताव में होने वाली वार्ता भारत – आसियान शिखर बैठक तथा पूर्वी एशिया शिखर बैठक के लिए नवंबर में प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश की यात्रा के लिए मंच तैयार करेगी।
भारत के लिए म्यांमार का महत्व बहुत ही स्पष्ट है : भारत और म्यांमार की सीमाएं आपस में लगती हैं जिनकी लंबाई 1600 किमी से भी अधिक है तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा से भी दोनों देश जुड़े हुए हैं। म्यांमार के साथ चहुंमुखी संबंधों को बढ़ावा देना भारत
के पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने सीमा क्षेत्र से बाहर प्रचालन करने वाले भारतीय विद्रोहियों से लड़ने के लिए वास्तविक समयानुसार आसूचना को साझा
करने के लिए संधि की है। इस संधि में सीमा एवं समुद्री सीमा के दोनों ओर समन्वित रूप से गस्त लगाने की परिकल्पना है तथा इसके लिए सूचना का आदान – प्रदान आवश्यक है ताकि विद्रोह, हथियारों की तस्करी तथा ड्रग, मानव एवं वन्य जीव के अवैध व्यापार से संयुक्त रूप
से निपटा जा सके।
1951 की मैत्री संधि पर आधारित द्विपक्षीय संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं तथा एक दुर्लभ गतिशीलता एवं लोच का प्रदर्शन किया है। 1987 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की यात्रा ने भारत और म्यांमार के बीच मजबूत संबंध की नींव रखी। तीसरी सहस्राब्दी की
उदय ने देखा है कि द्विपक्षीय संबंधों को एक नया बल मिल रहा है।
दो तरफा यात्राएं

कुछ साल पहले म्यांमार में राजनीतिक एवं आर्थिक सुधारों के बाद से पिछले चार वर्षों में
भारत - म्यांमार संबंधों में महत्वपूर्ण उछाल आया है। यह हाई प्रोफाइल दो तरफा यात्राओं से भी प्रतिबिंबित होता है : राष्ट्रपति यू थिन सेन 12 से 15 अक्टूबर, 2011 के दौरान भारत यात्रा पर आए थे जो मार्च, 2011 में म्यांमार की नई सरकार के शपथ लेने के बाद से म्यांमार
की ओर से भारत की पहली राजकीय यात्रा थी। इसके बाद भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह की 27 से 29 मई, 2012 के दौरान म्यांमार की यात्रा ने परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया जो एक महत्वपूर्ण मील पत्थर साबित हुई जिसके दौरान दोनों पक्षों ने दर्जनों
करारों पर हस्ताक्षर किए तथा भारत ने म्यांमार को 500 मिलियन अमरीकी डालर के लिए एक नई लाइन ऑफ क्रेडिट (एल ओ सी) प्रदान की। राष्ट्रपति थिन सेन ने दिसंबर, 2012 में नई दिल्ली में आयोजित भारत – आसियान संस्मारक शिखर बैठक में भाग लिया तथा मुंबई एवं रत्नागिरी
का भी दौरा किया। डा. मनमोहन सिंह ने बिम्सटेक शिखर बैठक के लिए मार्च, 2014 में फिर से म्यांमार का दौरा किया।
आर्थिक संबंधों में वृद्धि
आर्थिक संबंधों को एक नई गति प्रदान करना आने वाले दिनों में फोकस का एक प्रमुख क्षेत्र होगा। ऊर्जा एवं संसाधन की दृष्टि से समृद्ध म्यांमार अवसर की धरती के रूप में उभरा है तथा 3 साल पहले जिन आर्थिक एवं राजनीतिक सुधारों को शुरू किया उससे दोनों देश अपने आर्थिक
संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। जो द्विपक्षीय व्यापार 1980 के दशक के पूर्वार्ध में मात्र 12 मिलियन अमरीकी डालर था वह आज 2 बिलियन अमरीकी डालर के आसपास पहुंच गया है।
अनेक भारतीय कंपनियां पहले ही म्यांमार में अपना डेरा जमा चुकी हैं तथा वहां काम कर रही हैं। इनमें अन्य कंपनियों के अलावा सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ओ एन जी सी विदेश लिमिटेड (ओ वी एल), जुबिलांट आयल गैस, सेंचुरी प्लाई, टाटा मोटर्स, एस्सार एनर्जी, राइट्स,
एस्कॉर्ट, रेन्बेक्सी, कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड, डा. रेड्डी लैब, सिपला एवं अपोलो जैसे नाम शामिल हैं। शीर्ष भारतीय कंपनियां अनेक उद्योगों में 2.6 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश करना चाहती हैं, जिसमें दूर संचार, ऊर्जा एवं विमानन क्षेत्र शामिल हैं।
संबंधों को ऊर्जावान बनाना

ऊर्जा सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है तथा भारत की सरकारी स्वामित्व
वाली कंपनियां और निजी कंपनियां इस देश में गैस ब्लाक का अधिग्रहण कर रही हैं। 7 भारतीय कंपनियां हैं जिन्हें प्रस्तावित 18 अपतटीय गैस ब्लाक के लिए अंतिम बोली प्रस्तुत करने के लिए म्यांमार सरकार द्वारा छांटी गई 59 कंपनियों में शामिल किया गया है। ओवीएल एवं
गेल पहले ही चीन - म्यांमार गैस पाइप लाइन परियोजना में 1.33 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश की घोषणा कर चुकी हैं।
खाद्य सुरक्षा
मिलावट रहित वनों और उपजाऊ जमीन से समृद्ध म्यांमार इस क्षेत्र के लिए खाद्य भंडार के रूप में उभर रहा है। आश्चर्य की बात नहीं है कि म्यांमार से भारत के आयात में बीन्स, दलहन एवं वन आधारित उत्पादों का वर्चस्व है। कृषि प्रौद्योगिकी में अपनी महारथ के दम पर भारत
म्यांमार के कृषि क्षेत्र को परिवर्तित करने के लिए अपनी विशेषज्ञता को पूरी तरह साझा करने का इच्छुक है। 2012 में तत्कालीन प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह की यंगून यात्रा के दौरान भारत ने येजिन में एक उन्नत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा केंद्र तथा नाय पी ताव में
एकीकृत प्रदर्शन पार्क में एक राइस बायो पार्क की स्थापना के लिए समर्थन करने का वचन दिया था।
विकास सहयोग
क्षमता निर्माण एवं विकास सहयोग बढ़ती भारत - म्यांमार साझेदारी के जुड़वे स्तंभ हैं। भारत ने अवसंरचना एवं क्षमता निर्माण की कई परियोजनाओं के लिए म्यांमार को 500 मिलियन अमरीकी डालर की लाइन ऑफ क्रेडिट प्रदान की है, जो दक्षिण पूर्व एशिया के किसी भी देश को सबसे
बड़ी लाइन ऑफ क्रेडिट है। भारत आई टी ई सी जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों तथा म्यांमार सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (एम आई आई टी), जिसे मंडाले में स्थापित किया जा रहा है, जैसे उत्कृष्टता के केंद्र म्यांमार में स्थापित करने के माध्यम से म्यांमार के लोगों को
सशक्त बनाने की दिशा में सबसे आगे रहा है। औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र, म्यांमार – भारत अंग्रेजी भाषा केंद्र (एम आई सी ई एल टी), भारत - म्यांमार उद्यमशीलता विकास केंद्र (एम आई ई डी सी), भारत - म्यांमार आई टी कौशल संवर्धन केंद्र (आई एम सी ई आई टी एस), भाषा
प्रयोगशाला तथा यंगून एवं नाय पी ताव में विदेश मंत्रालय में ई-रिसोर्स सेंटर कुछ अन्य उत्कृष्ट परियोजनाएं हैं जिन्हें भारत की सहायता से स्थापित किया गया है।
म्यांमार के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए भारत संयोजकता की परियोजनाओं की गति तेज करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है, जैसे कि कलादन मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना तथा टामू – कलेवा – कलेमोर सड़क पर 71 पुलों का निर्माण / उन्नयन। ऐसा माना जा रहा
है कि त्रिपक्षीय राजमार्ग जो 2016 तक भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच अचूक संयोजकता प्रदान करेगा, गेम चेंजर के रूप में काम करेगा।
लोकतांत्रिक रिश्ता
लोकतांत्रिक परिवर्तन की दिशा में म्यांमार की सतत रूप से जारी यात्रा भारत और म्यांमार को और करीब आने का वचन देती है क्योंकि दक्षिण पूर्व एशिया का यह देश संस्था निर्माण में भारत की विशेषज्ञता का उपयोग कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में म्यांमार के दर्जनों संसद
सदस्य संसदीय प्रक्रिया एवं पद्धति में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भारत के दौरे पर आए हैं।
जनता की शक्ति
(श्वेडागन पगोडा, यंगून, म्यांमार)हालांकि राजनय एवं व्यवसाय के अपने – अपने तर्क होते
हैं परंतु जन दर जन संपर्क भारत एवं म्यांमार के बीच स्थायी मैत्री को एक विशेष महत्व प्रदान करता है। म्यांमार में 2.5 मिलियन का एक मजबूत भारतीय समुदाय रहता है जो ज्यादातर यंगून एवं मंडाले में बसा हुआ है। म्यांमार की प्रसिद्ध नेता आंग सान सू की का भारत
से एक विशेष रिश्ता है। उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में उस समय पढ़ाई की थी जब उनकी मां भारत में राजदूत के रूप में तैनात थी। भगवान बुद्ध का जन्म स्थल बोध गया म्यांमार के नेताओं के लिए ऐसा स्थल है जिसका वे दौरा अवश्य करते हैं और यह उनके लिए
सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। म्यांमार के लोगों को भारत सरकार द्वारा भेंट स्वरूप दिया गया सारनाथ शैली का बुद्ध स्तूप जिसे श्वेडागन पगोडा परिसर में स्थापित किया गया है, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत रिश्ते का एक ज्वलंत उदाहरण है। शास्त्रीय
एवं आधुनिक कला पर आधारित बालीवुड एवं भरतनाट्यम म्यांमार में समान रूप से लोकप्रिय हैं। और इस पड़ोसी देश के युवाओं एवं बुजुर्गों दोनों में योग को नए श्रद्धालु मिल रहे हैं।
अवसर का लाभ उठाना
म्यांमार हाल के वर्षों में अपने दरवाजे खोल रहा है जिसकी वजह से यह देश स्थापित एवं नए खिलाडि़यों के बीच प्रतियोगिता का क्षेत्र बन गया है। आर्थिक सुधारों के साथ ही लोकतांत्रीकरण की वजह से भारत के लिए नए अवसरों के द्वार खुले हैं, जो खोए हुए समय की भरपाई करने
के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। राजनय, व्यवसाय एवं संस्कृति के रचनात्मक मिश्रण के आधार पर भारत - म्यांमार संबंध आने वाले दिनों में निश्चित रूप से नई ऊंचाइयों को छुएंगे।
(मनीश चंद इंडिया राइट्स नेटवर्क
www.indiawrites.org के मुख्य संपादक हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं इंडिया स्टोरी पर केंद्रित एक पोटर्ल एवं ई-जर्नल है।)
- इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के निजी विचार हैं।
संदर्भ :
भारत और म्यांमार के बीच विदेश कार्यालय परामर्श
भारत और म्यांमार ने सीमा सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया :
भारत के प्रधान मंत्री की म्यांमार की राजकीय यात्रा पर भारत और म्यांमार द्वारा संयुक्त वक्तव्य
बस ईस्ट पालिसी : इंफाल – मंडाले राइड का लुत्फ उठाने के लिए तैयार हो जाइए।
बदलता म्यांमार : उस भाग्यशाली मुलाकात के दो वर्ष बाद
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