लेखक : मनीष चंद
यह कूटनीति और मित्रता के साथ इतिहास, संस्कृति एवं सभ्यतागत स्मृतियों का मिश्रण करने वाली समुद्र पार की यात्रा है। दक्षिण प्रशांत महासागर में हजारों मील दूर स्थित परंतु भावनाओं से जुड़ा हुआ और 800 से अधिक चकित कर देने वाले वाले नयनाभिराम मूंगा द्वीपसमूहों
की एक श्रृंखला से बना हुआ फीजी भारतीय मूल के उन 300,000 से अधिक व्यक्तियों के जरिये भारत से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है जिन्होंने इस प्रशांत राष्ट्र को सदियों पूर्व अपना घर बना लिया था।
पुराने रिश्तों में नई मिठास पैदा करना
आप चाहें तो इसे प्रशांत रिश्ता कह सकते हैं। भारत और फीजी के बीच बहु-रंगी रिश्तों को नई चमक मिलने वाली है जब सुवा 19 नवंबर को भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करेगा। 33 वर्ष पहले 1981 में जब इंदिरा गांधी ने इस प्रशांत राष्ट्र का दौरा किया
था, उसके बाद से भारत के प्रधान मंत्री की यह पहली फीजी यात्रा होगी।
मील के पत्थर
(1981 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी अपने फीजी दौरे पर)
इस दौरे का समय अनुकूल है जब श्री मोदी फीजी में बहुदलीय चुनावों, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मुक्त और निष्पक्ष चुनावों के रूप में मान्यता दी गई है, के कुछ सप्ताह बाद इस द्वीपसमूह राष्ट्र का दौरा करेंगे। भारत ने फीजी द्वारा पुन: लोकतंत्र को अपनाए
जाने का स्वागत किया है और अमिट स्याही तथा प्रशिक्षण प्रदान करके चुनाव प्रक्रिया में सहयोग दिया है। भारत ने फीजी के चुनावों में सह-अध्यक्ष के रूप में (ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ) बहुपक्षीय पर्यवेक्षक समूह (एम ओ जी) में भी भागीदारी की थी। आठ वर्ष के
सैन्य शासन के बाद लोकतंत्र की बहाली तथा एक नए संविधान का प्रख्यापन, जो सभी नागरिकों को उनकी जातीयता का भेद किए बिना समानता की गारंटी देता है, से फीजी के आर्थिक परिप्रेक्ष्य के संबंध में नई आशा का संचार करता है और भारत ने राष्ट्रीय नवीकरण की इसकी परियोजना
में इस द्वीपसमूह राष्ट्र के साथ भागीदार बनने की इच्छा व्यक्त की है।
सुवा में भारत - फीजी संबंधों की नवीन गरमाहट महसूस की जा सकती है। फीजी के प्रधान मंत्री वोरेक (फ्रेंक) बैनीमरामा विश्व के उन प्रथम नेताओं में से एक थे जिन्होंने श्री मोदी को मई 2014 में राष्ट्रीय चुनावों, जिसमें देश में एक तिहाई सदी से चले आ रहे गठबंधनों
का अंत हो गया, में स्पष्ट बहुमत से उनकी पार्टी के विजयी होने पर बधाई दी थी। बैनीमरामा ने भारतीय नेता को शीघ्र फीजी आने का निमंत्रण देते हुए कहा था, ‘‘मुझे विश्वास है कि हमारे दोनों देशों और अपनी जनता के बीच अटूट रिश्ता बनाने वाली मित्रता और सहयोग की भावना
आने वाले वर्षों में और मजबूत होगी।’’ श्री मोदी ने अपने दौरे से पहले एक उत्साहपूर्ण टिप्पणी भी की है जिसमें कहा है कि प्रशांत महासागर के इस राष्ट्र में इस वर्ष के चुनावों के शीघ्र पश्चात् फीजी का दौरा करना विशेष लाभकारी होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने चंद्र
मिशन के सहयोग के रूप में उस द्वीपसमूह पर हमारे वैज्ञानिकों की मेजबानी करने के लिए उनके आभारी हैं। हम प्रशांत द्वीपसमूह में हमारे मित्र देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय और बहुपक्षीय मंचों में मजबूत आर्थिक सहयोग एवं घनिष्ठ भागीदारी बढ़ा सकते हैं।’’
विकास भागीदारी
साझा हितों और नवीकृत आशा की इस पृष्ठभूमि में, प्रधान मंत्री मोदी फीजी के अपने काउंटरपार्ट के साथ व्यापक मुद्दों पर बातचीत करेंगे और इस द्वीपसमूह राष्ट्र के विकास एवं पुनर्जागरण के प्रति भारत की वचनबद्धता को रेखांकित करेंगे। बातचीत में फीजी के साथ विकास सहयोग
को बढ़ाने तथा स्वास्थ्य, शिक्षा और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में भागीदारी का विस्तार करने पर ध्यान दिया जाएगा। दोनों देशों ने सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन तथा सौर ऊर्जा के मुख्य क्षेत्रों को भविष्य में सहयोग करने के क्षेत्रों के रूप में चुना है।
भारत ने फीजी में चीनी के कारखानों का आधुनिकीकरण करने में अग्रणी भूमिका निभाई है और इस द्वीपसमूह राष्ट्र को जुलाई 2005 में 50.4 मिलियन डॉलर का ऋण प्रदान किया था। चीनी उद्योग के अलावा, पर्यटन इस देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है जो ‘‘जहां खुशी आपको ढूँढ़
लेती है’’ ("Where Happiness Finds you.”) की नई टैगलाइन के साथ विश्व भर से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करेगा।
भारतीय और फीजी : सेतु निर्माण करते हुए
इस दौरे में स्पंदनशील भारतीय - फीजियन समुदाय, जो दोनों देशों के बीच सेतु निर्माता के रूप में कार्य करता है, के लिए एक विशेष भावनात्मक अनुगूँज सुनाई देगी। फीजी के साथ भारत के संबंध तब शुरू हुए थे जब 1879 में भारतीयों को गिरमिटिया श्रमिकों के रूप में ब्रिटिश
शासन द्वारा गन्ने की रुपाई के काम के लिए इस द्वीपसमूह राष्ट्र में लाया गया था। 1879 से 1916 के बीच 60,000 भारतीयों को फीजी लाया गया था। गिरमिट के शीर्षक से गिरमिटिया नाम से करार होने के बाद इन्हें गिरमिटिया कहा गया और अब भारतीय मूल के इन लोगों की संख्या
8,49,000 की आबादी (2009 के अनुमान) की 37 प्रतिशत है। भारतीय - फीजियन अब फीजी में जीवन के हर क्षेत्र में पैठ बना चुके हैं और उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभाओं से अपनी अपनाई हुई मातृभूमि को समृद्ध किया है। चाहे व्यवसाय, राजनीति, संस्कृति हो, चाहे मनोरंजन, भारतीय
- फीजियनों ने हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। महेंद्र पाल चौधरी ने 1999 के चुनावों को जीतने के बाद फीजी के प्रथम भारतीय - फीजियन प्रधान मंत्री बनने की विशेष उपलब्धि प्राप्त की। यह समुदाय फीजी जीवन-शैली में भली-भांति घुल-मिल गया है, परंतु इसने उस भूमि
के साथ अपने महत्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रिश्तों को बनाए रखा जिसे उनके पूर्वजों ने दशकों पहले छोड़ा था।
फीजी के गिरमिटिया
भारत श्री मोदी की फीजी यात्रा के दौरान प्रशांत समुदाय तक एक कूटनीतिक पहुँच बनाने के लिए भी तैयार है। भारत के साथ प्रथम शिखर सम्मेलन में, प्रधान मंत्री मोदी से अपेक्षा है कि वे दक्षिण प्रशांत द्वीप समूह के सभी 14 देशों, जो बेहद खूबसूरत हैं और जिनकी निराली संस्कृति
और जीवन-शैली है, के नेताओं के साथ बैठक करेंगे। इन प्रशांत देशों के साथ भारत के विशेष संबंध हैं, क्योंकि इनमें से प्रत्येक देश ने पुनर्गठित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की अपेक्षाओं का लगातार समर्थन किया है। भारत के विदेश
मंत्रालय के सचिव (पूर्व) श्री अनिल वाधवा कहते हैं, ‘‘भारत और प्रशांत द्वीपसमूह की जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियां समान हैं परंतु हमारे विकास के प्रयासों में सहयोग के लिए बड़े अवसर भी मौजूद हैं। हम संयुक्त राष्ट्र से संबंधित निकायों के साथ-साथ इस द्वीपसमूह
के देशों के प्रशांत क्षेत्र के मंचों पर भागीदारी करते रहे हैं और हमारे बीच अच्छी समझ है। वे हमें नीतियों, विकास सहायता और क्षमता-निर्माण के लिए नेतृत्व प्रदान करने वाले देश की भूमिका में देखना चाहते हैं। इस बैठक में कूटनीति के अभाव के मुद्दों का समाधान होने
और प्रशांत द्वीपसमूह के राष्ट्रों के साथ भारत के संबंधों में सुधार के लिए महत्वाकांक्षी रोडमैप प्राप्त होने की उम्मीद है, जिसने एक विशाल एशियाई पड़ौसी देश का ध्यान भी आकर्षित किया है।
संयोग से, प्रधान मंत्री की 10-दिवसीय विदेश यात्रा, जिसमें म्यांमा और ऑस्ट्रेलिया में बड़े बहु-राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन और दर्जनों द्विपक्षीय बैठकें शामिल हैं, फीजी में समाप्त हो रही है, और छोटे परंतु महत्वपूर्ण प्रशांत द्वीपसमूह के राष्ट्रों के नेताओं
के साथ बैठकें आने वाले दिनों में भारत के कूटनीतिक एजेंडा पर बड़ा प्रभाव डालने वाली हैं। अपने विकास एजेंडा तथा एक समावेशी वैश्विक व्यवस्था को प्राप्त करने की दिशा में, छोटे और बड़े देशों के साथ भागीदारी को आकार दे रही और उसे बढ़ा रही भारत की अग्रसक्रिय
कूटनीति के साथ, भारत का प्रशांत से रिश्ता आने वाले दिनों में नई ऊँचाइयां छूने वाले हैं।
(मनीष चंद अंतरराष्ट्रीय मामलों पर केंद्रित एक वेब पोर्टल और ई-पत्रिका इंडिया राइट्स नेटवर्क,www.indiawrites.org तथा इंडिया स्टोरी के मुख्य संपादक हैं।)
- इस लेख में अभिव्यक्त विचार पूर्णत: लेखक के स्वयं के विचार हैं।
संदर्भ
भारत फीजी को लोकतांत्रिक चुनाव करवाने में सहायता करेगा।
भारत के शल्य चिकित्सक फीजी में हृदय शल्य चिकित्सा करेंगे
म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया और फीजी के लिए रवाना होने से पहले प्रधान मंत्री का वक्तव्य
फीजी
में भारत के उच्चायुक्त और एपिया, समोआ में लघु द्वीपसमूह विकासशील देशों के संबंध में तृतीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल के नेता का वक्तव्य
प्रधान मंत्री मोदी की फीजी यात्रा का महत्व
मोदी की द्रुत गति की कूटनीति : 10 दिन में 3 देश, 4 शिखर सम्मेलन, 40 नेता