लेखक : राजदूत भास्वती मुखर्जी*
पृष्ठभूमि
- भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत 5000 साल पुरानी संस्कृति एवं सभ्यता से चली आ रही है। डा. ए एल बाशम ने ''भारत की सांस्कृतिक विरासत’’ नामक अपनी प्रमाणिक पुस्तक में नोट किया है कि ''हालांकि सभ्यता के चार मुख्य उद्गम होते हैं जो पूरब से पश्चिम की ओर
प्रस्थान करने वाले चीन, भारत, फर्टाइल क्रिसेंट तथा भूमध्य रेखा, विशेष रूप से ग्रीक और इटली हैं, परंतु भारत अधिक श्रेय का हकदार है क्योंकि भारत ने अधिकांश एशिया के धार्मिक जीवन को गहन रूप से प्रभावित किया है। भारत ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विश्व के
अन्य भागों पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है।''
तीसरी शताब्दी के गंधर्व से बुद्धा नक्काशी (इस समय पाकिस्तान में है)
इस बात को याद करना भी महत्वपूर्ण है कि हमारी दो महान नदियों अर्थात सिंधु और गंगा की घाटियों में जो सभ्यता विकसित हुई वह यद्यपि हिमालय की वजह से भौगोलिक क्षेत्र को सीमांकित किया परंतु कभी भी पृथक सभ्यता नहीं रही। यह धारणा कि यूरोपीय अध्ययन, विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी के प्रभाव ने पहले पूरब को परिवर्तित नहीं किया, सदियों से इस धारणा को अस्वीकार किया जा सकता है तथा किया भी जाना चाहिए। भारतीय सभ्यता हमेशा से गतिशील, न कि स्थिर रही है। भूमि एवं समुद्री मार्गों से व्यापारी एवं उपनिवेशी भारत आए। भारत का पृथक्करण
कभी पूरा नहीं हुआ, अधिकांश पुराने काल से। इसकी वजह से सभ्यता के एक जटिल पैटर्न का विकास हुआ जो अमूर्त कला एवं सांस्कृतिक परंपराओं में बहुत स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुआ है, चाहे गंधर्व कला शैली के डांसिंग बुद्धा में जिसने ग्रीक को बहुत प्रभावित किया, से
लेकर उत्तर एवं दक्षिण भारत के मंदिरों में दिखाई देने वाली महान मूर्त विरासत में। इस महान धार्मिक एवं आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक योग का विकास था जो अधिकांश प्राचीन युग में मौजूद था तथा जिसे भारत की तांत्रिक सभ्यता के अंग के रूप में भी जाना जाता है। योग
करने के साक्ष्य पूरे उत्तर भारत में तथा हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में वैदिक पूर्व काल में भी मिले हैं। पौराणिक परंपराओं के अनुसार, भगवान शिव को योग का संस्थापक कहा जाता है तथा पार्वती उनकी पहली शिष्या थी।
- इस प्रकार, मूर्त सांस्कृतिक विरासत जैसे कि भारतीय उदाहरण को स्पष्ट करना या व्याख्या करना उसकी जटिलता की वजह से कठिन है। दूसरी ओर, मूर्त विरासत अधिक दर्शनीय होती है जिसकी वजह से इसको अच्छी तरह समझा जाता है। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सबसे अच्छी
परिभाषा आई सी एच पर यूनेस्को अभिसमय 2003 में दी गई है जो इसे बहुत विस्तृत ढंग से परिभाषित करता है तथा पूरी दुनिया में विविध अनुभवों एवं अभिव्यक्तियों को शामिल करता है जैसे कि ''प्रथाएं, अभ्यावेदन, अभिव्यक्ति, ज्ञान एवं कौशल तथा औजार, वस्तुएं, कलात्मक
वस्तुएं तथा सांस्कृतिक स्थान जो इससे जुड़े हैं – जिसे समुदायों, समूहों तथा कुछ मामलों में व्यक्तियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत के अंग के रूप में स्वीकार किया।'' यह भारत की महान धार्मिक, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की एक उत्कृष्ट परिभाषा है।
- भारत की धार्मिक एवं आध्यात्मिक विरासत के इस अमूर्त पहलू का महत्वपूर्ण प्रभाव भारत के अपने इतिहास, संस्कृति एवं सभ्यता की प्रचुर अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यहां जो मामला अध्ययन प्रस्तुत किया गया है वह योग का आइकॉनिक उदाहरण है।
आईसीएच की परिभाषा
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत क्या है? हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि विरासत स्मारकों या कलात्मक वस्तुओं के संग्रह पर समाप्त नहीं होती है। इसके तहत हमारे पूर्वजों से विरासत में प्राप्त परंपराएं या जीवंत अभिव्यक्तियां भी शामिल हैं तथा जो हमारे
वंशजों को प्राप्त होती हैं, जैसे मौखिक परंपराएं, अभिनय कला, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महोत्सव तथा परंपरागत शिल्प। अपने स्वरूप से ही यह अमूर्त सांस्कृतिक विरासत क्षण भंगुर होती है तथा संरक्षण एवं समझ की जरूरत होती है क्योंकि यह बढ़ते भूमंडलीकरण के आलोक
में सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कारक है। आईसीएच की समझ विकसित होने से एक अंतर्राष्ट्रीय, अंतर- सांस्कृतिक वार्ता की प्रक्रिया में मदद मिलती है और आगे चलकर अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देती है।
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को निम्नलिखित रूप में सबसे अच्छी तरह परिभाषित किया गया है:
- एक ही समय में परंपरागत, समकालीन एवं जीवंत क्योंकि यह एक गतिशील प्रक्रिया है;
- समावेशी क्योंकि यह सामाजिक सामंजस्य में योगदान करता है, आत्मसम्मान की भावना को प्रोत्साहित करता है तथा समुदायों एवं सामुदायिक जीवन को बनाए रखने में मदद करता है;
- प्रतिनिधिमूलक क्योंकि यह पीढ़ी दर पीढ़ी अंतरित होने वाले मौखिक कौशलों पर समृद्ध होता है;
- समुदाय आधारित क्योंकि इसे विरासत के रूप में तभी परिभाषित किया जा सकता है जब इसे समुदायों, समूहों या व्यक्तियों द्वारा इस रूप में स्वीकार किया जाए जो इसका सृजन, अनुरक्षण एवं पारेषण करते हैं।
इसलिए, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर केवल सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु ज्ञान एवं कौशल की संपदा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है जिन्हें इसके माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अंतरित किया जाता है।
मामला अध्ययन – योग
- योग के एक प्रख्यात प्रैक्टिशनर स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ''आसन, प्राणायाम’’ में कहा है कि ''योग कोई प्राचीन मिथक नहीं है जो गुमनामी में गड़ा है। यह वर्तमान समय की सबसे बहुमूल्य विरासत है। यह आज की आवश्यक आवश्यकता है तथा कल की संस्कृति
है।'' योग सही जीवन जीने का विज्ञान है तथा यह संस्कृत शब्द ‘युज’ से लिया गया है जिसका अभिप्राय एकता है। यह चिंतन, सोच एवं कार्य के बीच एकीकरण एवं सामंजस्य स्थापित करता है। सदियों से योग की कई शाखाएं विकसित हुई हैं परंतु इस बात पर आम सहमति है कि इसका विकास
भारत में मानव सभ्यता के शुरू में, वैदिक पूर्व काल में हुआ। आज यह पहले की अपेक्षा अधिक प्रासंगिक है तथा भारत की आध्यात्मिक विरासत के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक है।
मोहनजोदड़ो में ऐसी मोहरें पाई गई हैं जिसमें अपने सिर के बल पर खड़े एक चित्र को दर्शाया
गया है तथा एक को पद्मासन में बैठे दिखाया गया है (ऊपर); संभवत: योग के अभ्यास का यह सबसे प्राचीन संकेत है
- भारत यह सुनिश्चित करने के लिए एक सारवान मामला तैयार कर रहा है कि योग को 2016 तक यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया जाए। ऐसी स्थिति में योग 31वीं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत बन जाएगा जिसे यूनेस्को के साथ अब तक भारत से सूचीबद्ध किया
गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आयूष विभाग से एक नामांकन डोजियर तैयार करने के लिए कहा गया है। प्रलेखन की प्रक्रिया अभी आरंभिक चरण पर है। इस बारे में निर्धारण करने के लिए एक निर्णय लिया जाएगा कि योग की किन शाखाओं एवं धाराओं को शामिल किया जाना है तथा इसके लिए
विचार – विमर्श हेतु ब्रेन स्टार्मिंग सत्रों का आयोजन किया जाएगा जिसमें डोजियर में अभ्यास एवं परंपरा के प्रकारों को शामिल करने पर चर्चा होगी। यूनेस्को के साथ उत्कीर्णन सूची में योग के शामिल होने से यह बेहतर ढंग से प्रदर्शित होगा, इसके महत्व को समझने में
वृद्धि होगी तथा इसके संवर्धन एवं परिरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिए प्रस्ताव प्राप्त होंगे।
- उत्कीर्णन की प्रक्रिया जटिल है। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में योग को उत्कीर्ण कराने के लिए भारत को यह साबित करने की जरूतर होगी कि यूनेस्को के मानदंडों के अनुसरण में यह एक अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है। हमें यह भी प्रदर्शित करना होगा कि योग की
रक्षा करने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि समुदाय, समूह, व्यक्तियों एवं सरकार के प्रयासों के बावजूद इसकी दर्शनीयता खतरे में है। यूनेस्को, पेरिस में हमारे स्थायी प्रतिनिधि द्वारा संस्कृति मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा।
- हालांकि योग की उत्पत्ति भारत में हुई परंतु आज इसे आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है। हमारी आध्यात्मिक विरासत के अंग के रूप में योग की रक्षा करने के लिए भारत के प्रयासों को पिछले साल उस समय सुदृढ़ किया गया जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू
एच ओ) ने दिल्ली स्थित मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान को योग की पढ़ाई के लिए अनुसंधान के दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सहयोगी केंद्र (सी सी) के रूप में नामित किया।
नई दिल्ली स्थित मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान कुछ निर्णायक
चिंतन : परिवर्धित अंतर – सांस्कृतिक वार्ता के लिए तंत्र के रूप में योग
- भारत में, हम विरासत की जीवंत पद्धतियों एवं पैटर्न की एक अद्भुत संपदा के धरोहर हैं। लगभग 1400 बोलियों तथा आधिकारिक तौर पर मान्यताप्राप्त 18 भाषाओं, अनेक धर्मों, कला, वास्तुशिल्प, साहित्य, संगीत एवं नृत्य की विभिन्न शैलियों तथा जीवन शैली की अनेक पद्धतियों
के साथ भारत सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा अनेकता में एकता की अचूक तस्वीर प्रस्तुत करता है जो संभवत: दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलती है।
- हमारी महान धार्मिक एवं आध्यात्मिक विरासत की विविधता प्रदर्शित करती है कि संस्कृतियां अपने आप में आबद्ध या स्थिर ईकाई नहीं हैं। अंतर – सांस्कृतिक वार्ता की मौलिक बाधाओं में से एक यह धारणा है कि संस्कृतियां फिक्स होती हैं मानो कि फाल्ट लाइनें उनको अलग
– अलग करती हैं। बदलते उपनिवेशियों एवं राजनीतिक सत्ता के इतिहास के माध्यम से भारत की जीवंत सांस्कृतिक विरासत को शताब्दियों के अनुकूलन, पुन: सृजन तथा सह अस्तित्व द्वारा आकार दिया गया। भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत लंबे समय से समुदायों द्वारा अपनाए गए
विचारों, प्रथाओं, विश्वासों एवं मूल्यों में अभिव्यक्त होती है तथा राष्ट्र की सामूहिक स्मृति का हिस्सा है। भारत की भौतिक, जातीय एवं भाषायी विविधता उतनी ही चौंकाने वाली है जितना इसका सांस्कृतिक बहुलवाद, जो परस्पर संबद्धता की रूपरेखा में मौजूद है। कुछ
मामलों में, इसकी सांस्कृतिक विरासत अखिल भारतीय परंपराओं के रूप में अभिव्यक्त होती है जो किसी खास बस्ती, विधा या श्रेणी की सीमाओं में नहीं बंधी है, परंतु अनेक रूपों, स्तरों एवं रूपांतरों के रूप में है जो आपस में जुड़े हैं, फिर भी, एक – दूसरे से स्वतंत्र
हैं। भारत की विरासत की विविधता को रेखांकित करना प्राचीनतम काल से वर्तमान युग तक इसकी सभ्यता की सततता है तथा विभिन्न प्रभावों द्वारा बाद की अभिवृद्धियों की सततता है। योग उस सभ्यता की सततता को प्रदर्शित करता है।
- भारत की इस जीवंत धार्मिक परंपरा का अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बड़े पैमाने पर प्रसार करने की जरूरत है। इस बात की स्वीकारोक्ति एवं पहचान बढ़ती जा रही है कि इस तरह की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत लोगों तथा समाजों एवं संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत
वार्ता को बनाए रखने में मदद करती है। बदले में यह विकास एवं शांति की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की रणनीति को नवीकृत करने के लिए एक सशक्त लीवर बन जाती है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जी। अपने
इस भाषण में प्रधानमंत्री जी ने सुझाव दिया कि संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि वह 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाए
- भारत की सबसे पुरानी सांस्कृतिक विरासत के रूप में योग को अंतर्राष्ट्रीय पहचान प्रदान करने के लिए हमारे प्रयासों का नेतृत्व हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है जिन्होंने इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा को यह सुझाव दिया कि संयुक्त
राष्ट्र को चाहिए कि वह 21 जून, 2015 से हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाए। उम्मीद है कि महासभा 11 दिसंबर, 2014 को प्रधानमंत्री जी के सुझाव का समर्थन करेगी और इसे अपनी मंजूरी प्रदान करेगी। इससे यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची
में योग को शामिल करने तथा योग को पहचान प्रदान करने के भारत के मामले को भी मजबूती प्राप्त होगी।
- अंत में, इस बात को याद करना संगत हो सकता है कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था :
''हम मानते हैं कि हर कोई दिव्य है, भगवान है।
हर आत्मा एक सूर्य है जो अज्ञानता के बादलों से ढका है;
आत्मा और आत्मा के बीच अंतर बादलों की इन परतों की तीव्रता में अंतर की वजह से है।''
योग अज्ञानता के इन बादलों को दूर करके अंतर्राष्ट्रीय विश्वास, अंतर – सांस्कृतिक वार्ता एवं शांति निर्माण का एक तंत्र है। यह विश्व के लिए भारत की विरासत है।
*(लेखक एक पूर्व राजनयिक हैं जो यूनेस्को में भारत की स्थायी प्रतिनिधि (2004-2010)
थी। यह लेख विदेश मंत्रालय की वेबसाइट :
www.mea.gov.in के खंड ‘केंद्र बिंदु में’ के लिए अनन्य रूप से लिखा गया है)