लेखिका : राजदूत भास्वती मुखर्जी
पृष्ठभूमि
- 16 सितंबर, 1945 को लंदन में अपनाए गए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) के संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि ''चूंकि युद्ध की शुरूआत पुरूषों के मन में होती है, पुरूषों का मन ही शांति की रक्षा करता है तथा इसका निर्माण
अवश्य किया जाना चाहिए।'' इसमें आगे कहा गया है कि : ''न्याय एवं आजादी के लिए संस्कृति और मानवता की शिक्षा का प्रसार मानव की अस्मिता के लिए अपरिहार्य है तथा यह एक पुनीत कर्तव्य है जिसे सभी देशों को परस्पर सहायता एवं सरोकार की भावना से निभाना चाहिए।''
- उपर्युक्त बातें वैश्विक स्तर पर शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान एवं सूचना के प्रसार के माध्यम से और इन अधिदेशों के और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विकास के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए इस विशिष्ट एजेंसी के महत्व
को रेखांकित करती हैं। इसके उद्देश्य एवं लक्ष्य हमारे अपने संविधान में अधिष्ठापित मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुरूप हैं। संस्थापक सदस्य के रूप में, जिसने 4 नवंबर, 1946 को उस समय संविधान की पुष्टि की जब हमारा देश उपनिवेशी शासन के अधीन ही था, भारत ने शिक्षा,
विज्ञान एवं संस्कृतिक से संबंधित यूनेस्को के विभिन्न एजेंडा में यूनेस्को की प्राथमिकताओं के कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करने में नेतृत्व की भूमिका निभाई है। बहुलवादी, लोकतांत्रिक, बहुजातीय एवं बहु-सांस्कृतिक राज्य तथा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र
के रूप में हमने भिन्न – भिन्न विचारधाराओं, संस्कृतियों और सभ्यताओं के बीच सेतु के रूप में काम किया है और करते रहेंगे जैसा कि हमने यूनेस्को के ऊथल – पुथल से भरे इतिहास की विभिन्न अवधियों में प्रदर्शित किया है।
- हमारे नेतृत्व को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जाता है तथा इसे कभी चुनौती नहीं दी गई है। 1946 से हम यूनेस्को के कार्यपालक बोर्ड में लगातार चुने गए हैं जिसमें 2014 से 2017 की अवधि भी शामिल है। हालांकि हमारे देश को विकासशील देश का स्तर प्राप्त है फिर भी
हम इसके बजट में भारी योगदान करते हैं। भारत सरकार का वार्षिक वित्तीय योगदान यूनेस्को के कुल बजट का 0.5 प्रतिशत है तथा वर्ष 2014 में यह वार्षिक आधार पर 14 करोड़ रूपए था जो 2.25 मिलियन अमरीकी डालर के आसपास है। यूनेस्को के साथ भारत के सहयोग के लिए राष्ट्रीय
आयोग की अध्यक्ष मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी हैं। यूनेस्को में भारत के स्थाई शिष्टमंडल के अध्यक्ष विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजदूत / स्थाई प्रतिनिधि रूचिरा कंबोज हैं।
(यूनेस्को में भारत की राजदूत / स्थाई प्रतिनिधि सुश्री रूचिरा कंबोज)
- इस समय भारत यूनेस्को के 19 अभिसमयों का सदस्य का है जिसमें प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विरासत, शिक्षा तथा बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित अभिसमय शामिल हैं। अभी हाल ही में जो अभिपुष्टियां की गई हैं उनमें 2003 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत पर अभिसमय, 2005
में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की विविधता के संरक्षण एवं संवर्धन पर अभिसमय तथा 2005 में खेल में डोपिंग के खिलाफ अभिसमय शामिल हैं।
- भारत में यूनेस्को के दो कार्यालय हैं, दक्षिण एवं मध्य एशिया के 11 देशों (अफगानिस्तान, बंग्लादेश, भूटान, भारत, ईरान, मालदीव, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका) के लिए नई दिल्ली क्लस्टर कार्यालय और अभी हाल ही में एम जी आई ई पी – महात्मा
गांधी शांति एवं संपोषणीय विकास शिक्षा संस्थान, जो एक श्रेणी-1 यूनेस्को संस्थान है जिसे भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है तथा पूर्णत: सहायता प्रदान की जाती है और वित्त पोषित किया जाता है। इसका विशेष महत्व है क्योंकि यह एशिया – प्रशांत क्षेत्र में
पहला श्रेणी-1 संस्थान है तथा इसे 6 माह की अभूतपूर्व समय-सीमा के अंदर कार्यपालक बोर्ड तथा आम सम्मेलन द्वारा अनुमोदित किया गया।
- जैव प्रौद्योगिकी के लिए एक श्रेणी-2 क्षेत्रीय कार्यालय भी स्थापित किया गया है। 37वें आम सम्मेलन द्वारा देहरादून के वन्य जीव संस्थान में स्थित प्राकृतिक विश्व विरासत पर दूसरे संस्थान के लिए प्रस्ताव को अनुमोदन प्रदान किया गया।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की यूनेस्को यात्रा
- इस विशेष संबंध एवं संपर्क की अभिपुष्टि के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की 10 अप्रैल, 2015 को पेरिस में यूनेस्को मुख्यालय की यात्रा का विशेष महत्व है। प्रधानमंत्री संगठन के गतिशील महानिदेशक इरिना बोकोवा (जो बुल्गारिया से हैं) के साथ बातचीत
करेंगे तथा उम्मीद है कि वह भारत – यूनेस्को संबंध को और सुदृढ़ करने तथा सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार करने के उपायों पर चर्चा करेंगे। प्रधानमंत्री यूनेस्को के कार्यपालक बोर्ड के सदस्यों की बैठक को संबोधित करेंगे तथा इस बैठक में बड़े पैमाने पर राजनयिक समुदाय
के सदस्य, यूनेस्को स्टाफ तथा गणमान्य हस्तियां शामिल होंगी जिसमें यूनेस्को के पेरिस आधारित सद्भाव राजदूत शामिल हैं। उम्मीद है कि वह यूनेस्को के साथ भारत की समय की कसौटी पर खरी मैत्री के मौलिक पैरामीटरों, उसके प्रमुख अधिदेशों के लिए भारत के समर्थन तथा
नई सहस्राब्दि में शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भारत के उपायों को रेखांकित करेंगे। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री 2015 पश्चात संपोषणीय विकास एजेंडा में यूनेस्को के योगदान पर भी अपना ध्यान केंद्रित करेंगे तथा नैतिक एवं आचार-शास्त्रीय मूल्यों
का भी उल्लेख करेंगे जो संगठन के कार्य का मार्गदर्शक होने चाहिए।
(पेरिस, फ्रांस में यूनेस्को का मुख्यालय। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की अपनी आगामी यात्रा
के दौरान यूनेस्को मुख्यालय जाएंगे) - प्रधानमंत्री दार्शनिक, कवि एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री अरविंदो की प्रतिमा पर फूलमाला चढ़ाएंगे, जिनके यूनेस्को के अंदर एवं फ्रांस में अनेक अनुयायी हैं तथा जिनके दर्शन एवं विचारों को अक्सर कार्यपालक बोर्ड एवं आम सम्मेलन में प्रमुख हस्तक्षेपों में उद्धृत
किया जाता है। एरोविले का यूनेस्को से एक अनोखा संबंध भी है। जनवरी, 2010 में, यूनेस्को के महानिदेशक के रूप में अपनी पहली यात्रा में सुश्री बोकोवा ने एरोविले का दौरा किया तथा भारत में प्रचलित अरविंदो की भावना के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की।
(प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी यूनेस्को के मुख्यालय परिसर में श्री अरविंदो की ताम्र प्रतिमा पर
फूलमाला भी चढ़ाएंगे) भारत में यूनेस्को का
मिशन : इसके प्रमुख अधिदेश तथा उनके प्रभाव - यूनेस्को का मिशन आमतौर पर साझे मूल्यों के लिए सम्मान के आधार पर विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं एवं लोगों के बीच वार्ता के लिए परिस्थितियों का सृजन करना है। इसलिए, इसका मिशन शांति स्थापना, गरीबी उन्मूलन, संपोषणीय विकास तथा परस्पर सांस्कृतिक वार्ता
में योगदान करना है और इसके लिए शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, संचार एवं सूचना का सहारा लिया जाता है।
- भारत में, इसके 5 प्रमुख कार्यक्रमों को ध्यान में रखते हुए मिशन अनेक अति महत्वपूर्ण उद्देश्यों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा :
· सबके लिए कोटिपरक शिक्षा तथा जीवनपर्यंत शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना
· संपोषणीय विकास के लिए वैज्ञानिक ज्ञान एवं नीति का उपयोग करना
· नई सामाजिक एवं नैतिक चुनौतियों को दूर करना
· सांस्कृतिक विविधता, अंतर सांस्कृतिक वार्ता तथा शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना
· सूचना एवं संचार के माध्यम से समावेशी ज्ञान समाज का निर्माण करना
यूनेस्को का नई दिल्ली स्थित कार्यालय : रोड मैप तैयार करने में बहुमूल्य साझेदार
- जापान के निदेशक शिगेरू ओएगी के नेतृत्व में यह कार्यालय समस्याओं के समाधान के नवाचारी तरीके प्रस्तुत करके, साक्ष्य पर आधारित नीतिगत विकल्पों का प्रस्ताव करके और अंतर्राष्ट्रीय मानकों एवं मानदंडों के अनुपालन को बढ़ावा देकर भारत सरकार के समावेशी, संपोषणीय
एवं साम्यूपर्ण विकास की प्राथमिकताओं को प्राप्त करने में मदद करने के लिए सरकार में तथा सरकार से बाहर अन्य साझेदारों के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह संयुक्त राष्ट्र विकास कार्य रूपरेखा (यू एन डी ए एफ) 2013-17 पर आधारित है जो भारत में संयुक्त राष्ट्र
के सामूहिक कार्य का मार्गदर्शन करता है।
यूएनडीएएफ के छह विस्तृत परिणाम हैं :
· समावेशी विकास,
· खाद्य एवं पोषण सुरक्षा,
· लैंगिक समानता,
· कोटिपरक बुनियादी सेवाओं तक साम्यपूर्ण पहुंच,
· अभिशासन, और
· संपोषणीय विकास
यूएनडीएएफ के तहत, भारत में संयुक्त राष्ट्र द्वारा सामूहिक भागीदारी का उद्देश्य प्राथमिकता वाले 9 राज्यों अर्थात असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश पर ध्यान केंद्रित करना है।
शांति एवं संपोषणीय विकास के लिए शिक्षा के लिए साधनों का निर्माण करना : एम जी ई आई पी (महात्मा गांधी शांति एवं संपोषणीय विकास शिक्षा संस्थान) की स्थापना
- महात्मा गांधी जी ने कहा था ''कोई भी शिक्षा सच्ची शिक्षा नहीं है जब तक कि यह सत्य एवं अहिंसा पर आधारित न हो’’। यह यूनेस्को के संविधान के अनुरूप है। महानिदेशक ने हाल ही में कहा था कि ''शिक्षा स्थाई शांति एवं संपोषणीय विकास के लिए सबसे बुनियादी आधारशिला
है।'' शांति की शिक्षा में यूनेस्को के विश्वव्यापी अधिदेश को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया गया है।
- भारत के नेतृत्व में यूनेस्को में एशियाई समूह ने लंबे समय से इस बात पर जोर दिया है कि विविधता एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्धता के बावजूद एशियाई क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में यूनेस्को की कोई श्रेणी-1 संस्था नहीं है। भारत ने वर्ष 2010 के
पूर्वार्ध में नई दिल्ली, भारत में स्थित करने के लिए यूनेस्को की श्रेणी-1 संस्था के लिए कार्यपालक बोर्ड एवं आम सम्मेलन के समक्ष एक सुगठित प्रस्ताव पेश किया जो शांति एवं संपोषणीय विकास हेतु शिक्षा के लिए समर्पित होगा तथा इसका नामकरण भारत के राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी के नाम पर किया। इस प्रस्ताव का बड़े पैमाने पर समर्थन किया गया तथा अक्टूबर, 2008 में आम सम्मेलन द्वारा सराहना के साथ इसे अपनाया गया। यूनेस्को के महानिदेशक की उपस्थिति में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में एक श्रेष्ठ
समारोह में 2012 में इसकी औपचारिक रूप से स्थापना की गई। यह भारत सरकार द्वारा बहुत ही उदारता के साथ वित्त पोषित है, जिसने पहले पांच वर्षों के लिए संस्थान की अवसंरचना तथा कार्यक्रमों के लिए 40 मिलियन अमरीकी डालर की प्रतिबद्धता की है। इस प्रकार, भारत एशिया
प्रशांत क्षेत्र में इस संस्थान का सबसे महत्वपूर्ण साझेदार एवं हितधारक है।
- शैक्षिक नीतियों, अनुसंधान, पाठ्यचर्या एवं नवाचारी एवं शिक्षा पद्धतियों के माध्यम से एम जी ई आई पी शांति एवं संपोषणीय विकास को गति प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। इसकी कार्य योजना चार मुख्य क्षेत्रों में बंटी हुई है :
· पाठ्यचर्या – स्कूल एवं विश्वविद्यालय की पाठ्यचर्या तथा शिक्षण सामग्री में तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा एवं पाठ्यपुस्तक लेखकों के प्रशिक्षण के माध्यम से शांति एवं संपोषणीय विकास के ज्ञान, कौशल एवं अभिवृत्तियों को शामिल करना।
· शिक्षा की पद्धतियों में नवाचार – विशेष रूप से सूचना, संचार प्रौद्योगिकी के नवाचारी साधनों का उपयोग करना और शांति एवं संपोषणीय विकास की शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षण की विधियों का उपयोग करना।
· युवा – शांति एवं संपोषणीय विकास के लिए युवाओं की क्षमता एवं कौशल का निर्माण करना।
· यूनेस्को एम जी ई आई पी का यस शांति नेटवर्क 2015 पश्चात वैश्विक विकास एजेंडा में शांति एवं संपोषणीय शिक्षा के लिए वैश्विक युवा साझेदारी है।
· अनुसंधान एवं भविष्य – परिवर्तनकारी शिक्षा पर अनुसंधान के फ्रंटियर को आगे धकेलना।
भारत में यूनेस्को के प्रमुख अधिदेशों के कार्यान्वयन की प्रमुख विशेषताएं
शिक्षा - सभी तीन फोकस क्षेत्रों – पहुंच, गुणवत्ता एवं अंतर्वस्तु पर शिक्षा में भारत सरकार और यूनेस्को के बीच घनिष्ट एवं सतत सहयोग का इतिहास रहा है। भारत सबके लिए शिक्षा (ई एफ ए) के लक्ष्यों, 2015 पश्चात वैश्विक शिक्षा एजेंडा तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव की
वैश्विक शिक्षा प्रथम पहल (जी ई एफ आई) की दिशा में यूनेस्को के प्रयासों का हिस्सा रहा है, जिसकी यूनेस्को अग्रणी कार्यान्वयन एजेंसी है। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखरेख एवं शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा
आदि में भारत सरकार को नीतिगत एवं कार्यक्रम संबंधी सहायता के माध्यम से भारत में यूनेस्को द्वारा ई एफ ए के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग किया जाता है। इस समय भारत शिक्षकों पर ई एफ ए कार्य बल का अध्यक्ष है। यूनेस्को अपनी पीठ के कार्यक्रम के माध्यम से अनुसंधान
की क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।
- भारत में शिक्षा पर यूनेस्को के हाल के महत्वपूर्ण सम्मेलनों में कौशल एवं शिक्षा पर एशियाई शिखर बैठक शामिल है जिसमें संपूर्ण एशियाई क्षेत्र से शिक्षाविदों, मंत्रियों और नीतिनिर्माताओं ने भाग लिया। अफगानिस्तान इस्लामिक गणराज्य के माननीय शिक्षा मंत्री
डा. फारूक वारडक ने शिखर बैठक का उद्घाटन किया। सार्क के शिक्षा मंत्रियों की दूसरी बैठक नई दिल्ली में 30-31 अक्टूबर, 2014 को हुई जिसमें सार्क शिक्षा विकास के लक्ष्यों पर प्रगति की समीक्षा की गई; उपलब्धियों को सुदृढ़ करने में सहयोग को सुदृढ़ किया गया तथा चुनौतियों
का उल्लेख किया गया। मानव संसाधन विकास मंत्री ने बैठक की अध्यक्षता की। संस्कृति, विरासत और सूचना प्रौद्योगिकी
- संस्कृति और विरासत भारत में यूनेस्को की सबसे प्रमुख गतिविधियों में से एक है तथा इसमें यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल भारत की सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत विरासत की रक्षा करना शामिल है। वास्तव में, 1972 का विश्व विरासत अभिसमय और प्रख्यात भारतीय
श्री किशोर राव की अध्यक्षता में विश्व विरासत केंद्र के माध्यम से इसका कार्यान्वयन यूनेस्को का एक फ्लैगशिप कार्यक्रम है तथा यह संस्कृति मंत्रालय तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निकट सहयोग से काम करता है। संयुक्त राष्ट्र विश्व विरासत समिति के सदस्य
के रूप में भारत इस समय अनेक सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक परियोजनाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है।
- संस्कृति एवं सूचना प्रौद्योगिकी के तहत, यूनेस्को डिजिटल सशक्तीकरण प्रतिष्ठान के साथ साझेदारी कर रहा है। ग्रामीण भारत के कारीगरों एवं कलाकारों के लिए ‘आई सी टी का प्रयोग’ पर हाल के सम्मेलन में कलाकार एवं ग्रामीण कारीगर, शिल्पी संगठन, ऑन लाइन शिल्प
रिटेलर तथा कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में आई सी टी का प्रयोग करके नवाचारी कार्य करने वाले संगठन एकत्र हुए। डिजिटल अर्काइव, ग्रामीण क्षेत्रों से लोक कंसल्ट का लाइव वेब कास्ट, विरासत का समुदाय आधारित प्रलेखन तथा परफार्मर का कापीराइट सहित विविध पहलों पर प्रस्तुतियां
दी गई।
- भारत में 25 मिलियन श्रोताओं के साथ विश्व रेडियो दिवस मनाने में यूनेस्को ‘सामुदायिक रेडियो एवं सामाजिक समावेशन’ पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए सहायता प्रदान कर रहा है। इसके तहत यूनेस्को द्वारा स्थापित ''सामुदायिक मीडिया पर दक्षिण एशिया नेटवर्क’’ के
उद्घाटन तथा ''आंतरिक पलायन – सामुदायिक रेडियो के लिए मैनुअल’’ नामक यूनेस्को के प्रशिक्षण मैनुअल के समर्पण के साथ एक उद्घाटन सत्र शामिल होगा।
- यह रेखांकित करना जरूरी है कि यूनेस्को में विज्ञान के लिए ‘एस’ को उस समय विशेष स्थान दिया गया जब संगठन स्थापित किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के शीघ्र बाद संक्षेपाक्षर यूनेस्को में से विज्ञान के लिए ‘एस’ गायब हो गया। सर जूलियन, हक्सले के
नेतृत्व में यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिक समूह ने सुनिश्चित किया कि नवंबर, 1945 में ‘एस’ जोड़ा गया जिससे इसके बाद संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) का सृजन हुआ। पहली बार, किसी अंतर्सरकारी संगठन को विज्ञान में अंतर्राष्ट्रीय
संबंधों के विकास की महती जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस क्षेत्र की गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल हैं :
· विज्ञान में क्षमता का सुदृढ़ीकरण;
· विज्ञान नीति से संबंधित गतिविधियां;
· विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए सूचना प्रणालियां; और
· विज्ञान, समाज एवं विकास। - प्रमुख विशेषताओं में भारत के प्राकृतिक बायोस्फियर भंडार, महासागरीय संसाधन तथा जल शामिल हैं, जो प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में भारत - यूनेस्को सहयोग के फोकस क्षेत्र हैं। भारत 2015 में आई आई ओ ई की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए दूसरे अंतर्राष्ट्रीय हिंद
महासागर अन्वेषण (आई आई ओ ई – 2) के लिए अंतर्सरकारी महासागर आयोग का समर्थन करने की योजना बना रहा है। भारत इस आयोग की कार्यपालक परिषद का सदस्य है। मानव एवं बायोस्फियर कार्यक्रम वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से मानव जाति एवं उनके पर्यावरण के बीच संबंध को संवारने
की दिशा में काम कर रहा है तथा भारत के नौ बायोस्फियर भंडार यूनेस्को के बायोस्फियर भंडार के विश्व नेटवर्क में शामिल हैं।
भारत – यूनेस्को संबंध पर निर्णायक चिंतन - स्पष्ट रूप से, भारत और यूनेस्को शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, विरासत एवं सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से अधिक शांतिपूर्ण एवं संपोषणीय विश्व का निर्माण करने के प्रयास में स्वाभाविक साझेदार हैं। इस संबंध में, परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षा का प्रयोग
करने पर यूनेस्को द्वारा नए सिरे से बल दिया जाना विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गया है। भारत सरकार द्वारा युवा एवं कौशल विकास पर बल देश के लिए यूनेस्को के विजन तथा भविष्य के लिए वृहद शिक्षा एजेंडा के बिल्कुल अनुरूप है।
- यूनेस्को की गतिविधियों को सुदृढ़ करने में भारत बहुत योगदान कर सकता है। भारत के सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक योगदान में अपनी प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता के आधार पर अपनी साफ्ट पावर का प्रयोग करना है। वसुधैव कुटुम्बकम वैश्विक नागरिकता के पहले प्रणेताओं में
से एक है जैसा कि आज इसे समझा जा रहा है – यह इस संकल्पना पर आधारित है कि सभी व्यक्ति एक – दूसरे के लिए तथा अपने साझे भविष्य के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। यह संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के बीच यूनेस्को की वार्ता का आधार है। प्रधानमंत्री की यूनेस्को
की ऐतिहासिक यात्रा से इस बात को रेखांकित करने में मदद मिलेगी कि भारत की ऐतिहासिक वैश्विक विरासत को यूनेस्को के अंदर निरंतर सराहा जाए। यूनेस्को में श्री अरविंदो को अक्सर उद्धृत किया गया है तथा उनके दर्शन की निरंतर प्रासंगिकता को रेखांकित गया है :
''इन दि ब्लू ऑफ दि स्काई
इन दि ग्रीन ऑफ दि फारेस्ट,
हू इज दि हैंड
दैट हैज पेंटेड दि ग्लो?
इट इन ही इन दि सन
हू इज ऐजलेस एंड डेथलेस,
एंड इनटू दि मिडनाइटहिज शैडो इज थ्रोन।
ह्वेन डार्कनेस ह्वाज ब्लाइंडएंड इंगल्फड विद डार्कनेस,
हि वाज सीटेड विद इन इट,
इमेंस एंड अलोन।''
(लेखिका जो पूर्व राजनयिक हैं, यूनेस्को में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रह चुकी हैं (2004-2010)। यह लेख विदेश मंत्रालय की वेबसाइट
www.mea.gov.in के ‘केंद्र बिंदु में’ नामक खंड के लिए लिखा गया है)