लेखक : श्याम सरन
भारत और अफ्रीका के बीच राजनीतिक बंधुत्व और एकता की मजबूत भावना 20वीं शताब्दी के कई दशक पहले से चली आ रही है, जब भारत और अफ्रीका के लोग उपनिवेशी शासन से आजादी प्राप्त करने तथा अपनी स्वयं की नियति का निर्धारक बनने के लिए अथक संघर्ष कर रहे थे। महात्मा गांधी जी ने उपनिवेशी शासन, जातीय भेदभाव एवं दमन का विरोध करने के लिए दक्षिण अफ्रीका में अपने प्रवास के दौरान सत्याग्रह या अहिंसा का पथ तैयार किया। जब भारत ने 1947 में अपनी आजादी हासिल कर ली तब यह उपनिवेशवाद समाप्त करने की भावना को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रमुख आवाज बन गया। दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद के विरुद्ध पहले यू एन संकल्प को भारत द्वारा प्रायोजित किया गया। अपने शुरुआती दिनों में भारत हालांकि सीमित संसाधनों वाला गरीब देश था, इसके बावजूद अफ्रीका के हाल ही में आजाद हुए देशों में विकास को बढ़ावा देने के लिए अपने पास जो भी था उसे साझा करना इसने अपनी अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी समझा। अफ्रीकी देश भी 1955 में इंडोनेशिया में बांडुंग में आयोजित अफ्रीका - एशिया शिखर बैठक में एक प्रभावशाली आवाज बन गए। इससे पंडित जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो और मिस्र के राष्ट्रपति नासेर द्वारा 1961 में शुरू किए गए गुट निरपेक्ष आंदोलन में आगे चलकर उनकी भागीदारी का मार्ग प्रशस्त हुआ। स्वतंत्र अफ्रीकी देशों की सक्रिय भागीदारी के बगैर गुट निरपेक्ष आंदोलन के प्रतिनिधित्व में विकासशील देश अंतर्राष्ट्रीय शांति, सहयोग एवं विकास के लिए सशक्त ताकत कभी नहीं बन सकेंगे जिसे इसने पिछली शताब्दी के 60 और 70 के दशकों में विकसित किया। इस आंदोलन के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जाना चाहिए कि इसने पूरब और पश्चिम के बीच बंटे विश्व के लिए एक ताकतवर एंटीडोट प्रदान किया, जो वैचारिक दृष्टि से विरोधी कैंपों में बंटा था तथा परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ रहा था। शीत युद्ध के मुश्किल दिनों में बंधुत्व, परस्पर विश्वास एवं भरोसे की जो यह भावना उत्पन्न हुई वह आज भी भारत - अफ्रीका सहयोग को संचालित कर रही है, जिससे दोनों पक्ष द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय रूप से अपने सहयोग का विस्तार कर रहे हैं और उसे समृद्ध कर रहे हैं।
आज भारत और अफ्रीका विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाएं हैं। अफ्रीका भविष्य का महाद्वीप है। भारत एक बड़ी उभरती अर्थव्यवसथा है। जैसा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था 2007-08 के वैश्विक वित्तीय और आर्थिक संकट से केवल धीरे धीरे उबर रही है तथा यह संकेत मिल रहा है कि अब चीन कम विकास दर के चरण में प्रवेश कर सकता है तथा अधिक गृह आधारित आर्थिक रणनीतियां अपना सकता है, भारत और अफ्रीका साथ मिलकर संपूर्ण विश्व के लिए विकास के इंजन बन सकते हैं। भारत अफ्रीका के विकास को बनाए रखने के लिए अपनी पूंजी, कौशल तथा प्रौद्योगिकीय क्षमता का योगदान कर सकता है। बदले में अफ्रीका परस्पर लाभप्रद संसाधन साझेदारी तथा एक दूसरे के विस्तृत हो रहे बाजारों तक आसान पहुंच के माध्यम से भारत के विकास में योगदान कर सकता है। अफ्रीका पहले से ही भारत के सबसे तेजी से बढ़ रहे बाजारों तथा निवेश के गंतव्यों में से एक है। इस रुझान के जारी रहने की संभावना है।
हमारा विश्व आज भी भयावह गरीबी, बीमारी तथा युवाओं के लिए अवसरों के अभाव की दृष्टि से सर्वोत्तम है, जो अधिक संख्या में श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। ओ ई सी डी से जुड़े परंपरागत डोनर से तथा बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं से उपलब्ध संसाधन ऐसे समय में घट रहे हैं जब संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान सत्र द्वारा महत्वाकांक्षी संपोषणीय विकास लक्ष्य (एस डी जी) अपनाए गए हैं। विकासशील देशों में विकास सहयोग, उनमें विकास से संबधित अनुभवों की साझेदारी तथा यह सुनिश्चित करना कि उनके विकास पथ के तहत पर्यावरण की दृष्टि से संपोषणीय पथ का अनुसरण किया जा रहा है, ये नई चुनौतियां हैं जिनका आज हमारे विश्व द्वारा सामना किया जा रहा है। संपोषणीय विकास लक्ष्यों को सफलता के साथ प्राप्त किया जाएगा या नहीं प्राप्त किया जाएगा - यह महत्वपूर्ण रूप से इस बात पर निर्भर होगा कि भारत जैसे देश तथा अफ्रीका के देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लिए विकास के पथ के रूप में चुनते हैं। इस संदर्भ में भारत - अफ्रीका विकास सहयोग का महत्व अफ्रीका के व्यक्तिगत देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों तथा कुल मिलाकर अफ्रीकी संघ के रूप में अफ्रीका के साथ क्षेत्रीय संबंधों और अनेक उपक्षेत्रीय अफ्रीकी संगठनों के साथ क्षेत्रीय संबंधों से अधिक है। जैसा कि भारत - अफ्रीका सहयोग एक दूसरे के हितों पर आधारित है तथा इसके तहत स्थानीय प्राथमिकताओं पर बल दिया जा रहा है, क्षमता निर्माण ऐसा सांचा बन सकता है जिस पर वैश्विक स्तर पर संपोषणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जा सकता है। आगामी भारत - अफ्रीका शिखर बैठक पर इस दृष्टि से ध्यान से नजर होगी।
भारत और अफ्रीका के देश जैव विविधता की दृष्टि से असाधारण रूप से समृद्ध हैं, जहां जीव जंतुओं एवं वनस्पतियों की दुर्लभ प्रजातियां हैं जो अत्यधिक शोषण के अलावा जलवायु परिवर्तन की वजह से खतरे में हैं। हमें अपनी जैव विविधता की रक्षा करने के लिए मजबूत वैश्विक नियमों की जरूरत है। इसके लिए जैव विविधता अभिसमय के तहत विचार विमर्श में समन्वित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। एक मजबूत वैश्विक जलवायु परिवर्तन व्यवस्था में हमारी रुचि एक जैसी है, जो हमें पर्यावरण की दृष्टि से संपोषणीय ढंग से विकास करने में समर्थ बनाएगी। हम जलवायु परिवर्तन के परिणामों से सबसे अधिक प्रभावित होंगे और इसलिए हमें इस साल के उत्तरार्द्ध में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर होने वाली शिखर बैठक में जलवायु परिवर्तन पर चल रही बहुपक्षीय वार्ता में एक साथ निकटता से काम करना चाहिए।
बहुपक्षीय व्यापार वार्ता का दोहा चक्र कई वर्षों से अटका हुआ है। विश्व के अनेक क्षेत्रों में, जिसमें एशिया और अफ्रीका भी शामिल हैं, क्षेत्रीय मुक्त करार करने की रुझान है। तथापि आज हम मेगा ट्रेड ब्लाक की दिशा में रुझान देख रहे हैं और प्रशांत पारीय साझेदारी (टी पी पी) पर वार्ता का पूरा होना एक शुभ संकेत है। ऐसी संभावना है कि टी पी पी अखिल अटलांटिक व्यापार एवं निवेश साझेदारी (टी - टी आई पी) का अनुसरण करेगी। न तो भारत और न ही अफ्रीकी देश इन नए व्यापार गुटों के अंग हैं, जिनके बीच 65 प्रतिशत से अधिक वैश्विक व्यापार हो सकता है। भारत और अफ्रीका के देशों के आर्थिक हित विश्व व्यापार संगठन के तहत एक सार्वभौमिक, बहुपक्षीय स्तर पर वार्ता, नियमों पर आधारित विश्व व्यापार व्यवस्था से सबसे अच्छे ढंग से पूरे होंगे। दोनों पक्षों को दोहा चक्र को बहाल करने तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के विखंडन को रोकने के लिए उपायों एवं तरीकों का पता लगाने के लिए एक दूसरे से तथा समान सोच वाले अन्य देशों के साथ परामर्श करना चाहिए। वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस तरह के विखंडन का उनके आर्थिक संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
जैसा कि आज विश्व अधिक भूमंडलीकृत तथा परस्पर जुड़ा हुआ होता जा रहा है, एक दूसरे से जुड़े वैश्विक मुद्दों की अहमियत बढ़ रही है। इन मुद्दों का समाधान मुट्ठी भर शक्तिशाली देशों द्वारा या क्षेत्रीय प्रयासों के माध्यम से भी नहीं हो सकता है। इनमें कई तरह के मुद्दे शामिल हैं जैसे कि जलवायु परिवर्तन, वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां, दवाओं की तस्करी, इंसानों की तस्करी, व्यापक विनाश के हथियारों का प्रसार तथा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद। इसमें साइबर सुरक्षा एवं अंतरिक्ष सुरक्षा के नए आयाम भी जुड़ गए हैं। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर अफ्रीका के देशों और भारत जैसे विशाल एवं अधिक आबादी वाले देशों की सक्रिय भागीदारी अपरिहार्य हो गई है। यह इन चुनौतियों पर सहयोगात्मक रिस्पांस को बढ़ावा देने के लिए साथ मिलकर निकटता से काम करने के लिए भी दोनों पक्षों के लिए अवसरों का सृजन कर रही है। हम आशा कर सकते हैं कि आगामी भारत - अफ्रीका शिखर बैठक के एजेंडा में विश्व की इन नई चुनौतियों को शामिल किया जाएगा तथा इनसे निपटने के लिए सहयोग की रूपरेखा तैयार की जाएगी। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बहुत समृद्ध एवं विविध एजेंडा भारत और अफ्रीका के नेताओं की उस समय प्रतीक्षा करेगा जब शीघ्र दिल्ली में चौथी शिखर बैठक में उनकी मुलाकात होगी।
श्याम सरन पूर्व विदेश सचिव हैं। इस समय आप आर आई एस के अध्यक्ष और सी पी आर के सीनियर फेलो हैं।