हाल ही में संपन्न हुई लैटिन अमरीकी एवं कैरेबियन (एल ए सी) गोष्ठी, जिसे 8-9 अक्टूबर को भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित किया गया, के तीन सप्ताह बाद दिल्ली में वी वी आई पी भारत – अफ्रीका शिखर बैठक आयोजित हुई।
इस गोष्ठी में कोस्टारिका के उप राष्ट्रपति, उरूग्वे के विदेश मंत्री तथा अन्य एल ए सी देशों के मंत्रियों ने भाग लिया। उनके सम्मान में आयोजित डिनर में माननीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनने की भारत
की आकांक्षाओं, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन आदि जैसे मुद्दों का अच्छी तरह जिक्र किया। तथापि मुख्य फोकस भारत के साथ व्यवसाय था।
एक्जिम बैंक ने इस कार्यक्रम के दौरान ‘एलएसी के साथ भारत के व्यापार संबंधों में वृद्धि’ नाम से एक अध्ययन जारी किया। इस कागजात में इस क्षेत्र के संबंध में व्यापार सांख्यिकी एवं आंकड़ों को प्रलेखित किया गया है। वैश्विक आर्थिक मंदी, वस्तुओं की कीमतों में गिरावट
तथा एल ए सी अर्थव्यवस्थाओं एवं व्यापार पर उनका प्रभाव इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का जायजा प्रदान करते हैं। कलेंडर वर्ष 2014 में एल ए सी के साथ भारत का व्यापार 49.1 बिलियन अमरीकी डालर का था जो 2005 में 5.2 बिलियन अमरीकी डालर था (आई टी सी जिनेवा की सांख्यिकी)
जो वास्तव में आकर्षक है।
भारत के वाणिज्य विभाग की वेबसाइट www.dgft.gov.in – के अनुसार वित्त वर्ष 2014-15 (अप्रैल – मार्च) में भारत और एल ए सी के बीच व्यापार 45.11 बिलियन अमरीकी डालर था यह पिछले वित्त वर्ष के 44.82 बिलियन अमरीकी डालर के आंकड़े से थोड़ा अधिक है परंतु 2012-13 में
46.67 बिलियन अमरीकी डालर के अधिकतम व्यापार से थोड़ा कम है और 2000-01 के व्यापार से 1.6 बिलियन अमरीकी डालर कम है। इस शताब्दी में व्यापार में हर साल 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले दशक में एल ए सी के साथ भारत व्यापार घाटे पर चल रहा था – 2014-15 में 16.5
बिलियन अमरीकी डालर। हमें संरचना एवं रूझानों पर एक वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
कच्चा तेल (जो भारत के आयात का साठ से सत्तर प्रतिशत है) पांच देशों – वेनेजुएला, ब्राजील, मैक्सिको, कोलंबिया और एक्वाडोर से आता है। प्रचलित क्रेता बाजार में भारत को इस समय उनकी विश्वसनीयता के बारे में, मूल्य निर्धारण तंत्र के बारे में चिंता करने की जरूरत
नहीं है। तथापि, ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं की वजह से भारतीय कंपनियों को शोधित उत्पादों के लिए कुछ एल ए सी देशों में हर साल कई बिलियन अमरीकी डालर की तेल इक्विटी की तलाश करनी पड़ी है। इस बात की संभावना है कि यह रिवर्स फ्लो प्रभावित हो सकता है यदि निरूपित
एल ए सी रिफाइनिंग क्षमता साकार हो जाती है।
वस्तु बाजारों में अस्थिरता आमतौर पर अपनी स्वयं की गतिकी का सृजन करती है, चाहे चिली से कॉपर हो, ब्राजील से सुगर हो या अर्जेंटीना से सोया हो। अधिकांश भारतीय आयातकों को लिवरेज प्राप्त है, जैसा कि भारत सरकार करती है, इसमें कम टैरिफ तथा आयात की प्रक्रियाओं को
उदार बनाने की अब भी गुंजाइश हो सकती है। भरोसेमंद आपूर्ति तथा मूल्य लाभ सुनिश्चित करने के लिए कुछ भारतीय निवेश हुआ है, जो हमेशा सफल नहीं रहा है। ब्राजील में जिंदल स्टील और रेणुका सुगर क्रमश: बोलिबिया और ब्राजील में अपने अनुभवों का प्रयोग करने का प्रयास कर
रहे हैं। एस्सार स्टील द्वारा त्रिनिडाड और टोबैगो में एक कॉपर लाया गया है; रिलायंस ने कोलंबिया और पेरू के आयॅल ब्लॉक को फिर से भरा है।

एलएसी में आर्थिक विकास की गति धीमी हो रही है। भारत के कुछ प्रमुख बाजारों, विशेष
रूप से ब्राजील में मंदी का दौर चल रहा है। लैटिन अमरीका और कैरेबियन आर्थिक आयोग (ई सी एल ए सी) के अनुसार 2014 में औसत वार्षिक विकास दर 1.1 प्रतिशत थी, जो 2009 के बाद से सबसे कम विकास दर है। अप्रैल में इसने अनुमान व्यक्त किया था कि इस क्षेत्र की विकास दर इस
साल केवल 1 प्रतिशत के आसपास रहेगी। भारत के मुख्य बाजार – दक्षिण अफ्रीका – में सकल विकास दर शून्य रहेगी, मध्य अमरीका में विकास दर 3.2 प्रतिशत होनी चाहिए तथा कैरेबियन में यह 1.9 प्रतिशत होनी चाहिए। प्रमुख एल ए सी अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं डालर के मुकाबले
में गिर गई हैं, अधिकांश मामलों में रूपए से भी अधिक। चीन से मांग कम होने के कारण अनेक परियोजनाएं रूक गई हैं तथा अनेक क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। इन कारकों से भारतीय निर्यात के लिए मांग प्रभावित हो सकती है।
लैटिन अमरीका के प्रमुख बाजारों – मैक्सिको, पेरू, चिली – ने अखिल प्रशांत साझेदारी के लिए हस्ताक्षर किया है। यूरोप के साथ और एशिया के साथ भी व्यापार को बढ़ावा देने, व्यापार बाधाओं को कम करने तथा निवेश आकर्षित करने के लिए अनेक एल ए सी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा
वार्ता की जा रही है। क्षेत्र के अंदर एकीकरण को देखते हुए ये व्यवस्थाएं एल ए सी को आपूर्ति श्रृंखला, बौद्धिक संपदा तथा अन्य विनियामक व्यवस्थाओं में बंद करेंगी जो उनके अंतर्राष्ट्रीय समकक्षों का समर्थन करती हैं।
भारत का अभिन्न लाभ इस आर्थिक संबंध के पूरक स्वरूप में निहित है। सात प्रतिशत विकास दर तथा अपर्याप्त कच्चा माल, ईंधन और खाद्य के साथ भारत संसाधनों की दृष्टि से समृद्ध एल ए सी के लिए एक स्वाभाविक बाजार प्रस्तुत करता है। यह अन्य बाजारों की क्षति की कुछ हद
तक भरपाई कर सकता है। भारतीय आटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल, मशीनरी, आईटी सर्विसेस तथा अन्य निर्यात वहां अपनी उपस्थितिमजबूत कर रहे हैं।
भारत और एल ए सी के बीच निवेश धीरे – धीरे बढ़ा है। पिछले साल फिक्की द्वारा प्रायोजित एक कागजात से पता चलता है कि 2003 से 2013 की अवधि में लैटिन अमरीका द्वारा भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ डी आई) 2.68 बिलियन अमरीकी डालर या उस क्षेत्र से एफ डी आई आउट फ्लो
का 0.8 प्रतिशत था और यह उक्त अवधि में भारत द्वारा प्राप्त की गई कुल एफ डी आई का 1 प्रतिशत है। इसी अवधि में लैटिन अमरीका में भारतीय एफ डी आई की मात्रा 8.4 बिलियन अमरीकी डालर या भारत के कुल एफ डी आई आउट फ्लो का 7.4 प्रतिशत था, परंतु लैटिन अमरीका के एफ डी आई
इन फ्लो का 0.7 प्रतिशत था। ब्राजील, मैक्सिको, पेरू और अर्जेंटीना की कंपनियों की भारत में मौजूदगी है, जबकि अन्य एल ए सी देशों से कंपनियां क्षितिज पर हैं।
भारत की जिन प्रमुख कंपनियों ने एल ए सी में निवेश किया है उनमें निम्नलिखित शामिल हैं : ओ एन जी सी, वी पी सी एल, इंडियल ऑयल, वीडियोकॉन (हाइड्रो कार्बन); बिरला (मेटल), महिंद्रा, बजाज, हीरो (आटोमोबाइल)। जिन अन्य कंपनियों की भौतिक उपस्थिति है उनमें निम्नलिखित
शामिल हैं : लुपिन, क्लैरिस, सिपला, डा. रेड्डी (फार्मा); टी सी एस, इंफोसिस (आईटी); यू पी एल (एग्रो केमिकल); सुजलोन, प्राज (नवीकरणीय ऊर्जा) तथा कई अन्य।

भारत की आधिकारिक स्थापना प्रचुर संभावना को स्वीकार करती है। वाणिज्य विभाग
का फोकस – एलएसी कार्यक्रम, जो व्यापार संवर्धन के वित्त पोषण के लिए 1997 में शुरू किया गया था, 2019 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। उद्योग भवन पेरू के साथ मुक्त व्यापार वार्ता शुरू करने से पूर्व एक पूर्व संभाव्यता अध्ययन पर काम कर रहा है। 500 टैरिफ लाइनों
से कम से लेकर लगभग 3000 तक की टैरिफ लाइनों के साथ चिली के साथ तरजीही व्यापार करार के प्रभाव को अंतिम रूप दिया जाने वाला है। ब्राजील, पराग्वे और उरूग्वे पांच देशों वाले मरकोसुर (ब्राजील, अर्जेंटीना, पराग्वे, उरूग्वे और वेनेजुएला) के साथ इसी तरह के करार
को संपन्न करने के लिए भारत की पहल पर पारस्परिक कार्रवाई कर रहे हैं।
भारतीय व्यवसाय को सरकार के समर्थन की जरूरत है। इसका अभिप्राय राजनीतिक संपर्क एवं पुन: आश्वासन से अधिक है, हालांकि यह आवश्यक है। विनिमय के जोखिम के बावजूद रियायती वित्त पोषण के माध्यम से वित्तीय नींव महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सही मायने में देखा जाए,
तो भारतीय बैंकिंग इस क्षेत्र से गायब है। एक्जिम बैंक जो वित्त मंत्रालय का नौकर है, मौलिक रूप से राजनीतिक स्तर पर निर्धारित ऋण सहायता प्रदान करता है। निवेश संरक्षण पर करार, दोहरे कराधान के परिहार पर करार, फाइटोसेनेटरी विनियमन, नागर विमानन पर करार पर सभी संभावित
समकक्षों के साथ गंभीरता से और निर्णायक ढंग से बातचीत करने की जरूरत है।
अफ्रीका के 54 देशों के साथ व्यापार, जो 75 बिलियन अमरीकी डालर है, 45 बिलियन अमरीकी डालर – या एल ए सी के 33 देशों के 49 बिलियन अमरीकी डालर – आई टी सी के अनुसार – से तुलनीय है, मात्रा एवं संरचना की दृष्टि से। अफ्रीका ने भारतीय परियोजना वित्त पोषण का 7.4 बिलियन
अमरीकी डालर प्राप्त किया है जबकि एल ए सी के लिए 500 मिलियन अमरीकी डालर से भी कम वित्त पोषण प्रदान किया गया है। निकट भविष्य के लिए एल ए सी भारत की ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण घटक बनने वाला है। भारतीय उद्यम ने एल ए सी में सफलता का स्वाद चखा
है तथा संभवत: वे इसे बनाए रखेंगे। भारत ने अफ्रीका के साथ तीन शिखर बैठकों की मेजबानी की है। आज इस बात के लिए उपयुक्त समय है कि कुछ इसी तरह की चीजों पर एल ए सी के साथ भी विचार किया जाए।

दीपक भोजवानी लैटिन अमरीका एवं कैरेबियन के सात देशों में 2010 से 2012 तक के
बीच भारत के राजदूत के रूप में सेवा प्रदान कर चुके हैं।