लेखक : मनीश चंद
विश्व के सबसे रंगारंग चुनावों के बुखार एवं उन्माद के बीच भारतीय राजनय शांति से एवं सार्थक ढंग से गुंजन कर रहा है क्योंकि देश की विदेश सचिव एवं वरिष्ठ राजनयिक नए अवसरों की तलाश में, जो तेजी से भूमंडलीकृत विश्व में उत्पन्न हो रहे हैं, पूरब, पश्चिम, उत्तर
एवं दक्षिण की ओर रूख कर रहे हैं।
जब से 9 चरणीय विशाल कार्य चुनावों की शुरूआत 7 मई से हुई है तब से बीजिंग से लेकर ब्यूनस आयर्स तक और टोकियो से लेकर बिलिसी तक भारत ने कम से कम दर्जनों देशों के साथ भारत ने व्यापक स्तर की वार्ता की है। और आगे और भी देशों के साथ वार्ता होने वाली है।
विश्व के साथ भारत की सर्वदिशीय भागीदारी के 360 डिग्री विजन के साथ पूरब एवं पश्चिम की ओर देखते हुए भारत विविध देशों के साथ भागीदारी करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है जिसमें अगले कुछ दिनों में जब तक 16 मई को संसदीय चुनावों के परिणामों की घोषणा होने के बाद नई सरकार
गठित नहीं हो जाती है, यूएई, ओमान, ताजिकिस्तान, ग्रीस और फिनलैंड शामिल हैं।
भारत की शीर्ष राजनयिक विदेश सचिव श्रीमती सुजाता सिंह इस कार्य का नेतृत्व कर रही हैं तथा विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) श्री दिनकर खुल्लर और विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) श्री अनिल वाधवा सहित भारत के वरिष्ठतम राजनयिक उनकी इस कार्य में उपयोगी ढंग से सहायता
कर रहे हैं।
विदेश सचिव ने टोकियो में बहुपक्षीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर जापान के उप
विदेश मंत्री अकिताका सैकी के साथ परामर्श का आयोजन किया।
चीन, जापान एवं रूस के साथ भागीदारी
विदेश सचिव श्रीमती सुजाता सिंह ने चीन और जापान का अलग - अलग दो दौरा किया जहां उन्होंने एशिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के साथ आर्थिक एवं सामरिक भागीदारी का विस्तार करने संबंधी नई दिल्ली की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। यह तथ्य कि नई दिल्ली ने सप्ताह
के अंदर बीजिंग एवं टोकियो के साथ भागीदारी करने का विकल्प चुना है, कुछ विश्लेषकों द्वारा इस अटकल को जन्म दिया कि भारत दोनों देशों के बीच चल रहे खेल में संतुलन स्थापित करने के कार्य में बारीकी से शामिल है, जिन्हें अक्सर एक दूसरे के विरोधी के रूप में दर्शाया
जाता है। अनेकों बार भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि भारत परितोष के किसी खेल में शामिल नहीं है, परंतु इसकी रूचि केवल भारत के विकास के विकल्पों में वृद्धि करने में है।
विदेश सचिव श्रीमती सुजाता सिंह ने बीजिंग में 6वीं सामरिक वार्ता के लिए चीन के उप विदेश मंत्री
ल्यू झिनमिन से मुलाकात की।विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद के मध्य में भारत ने एक नौसैन्य अभ्यास में हिस्सा लेकर तथा बीजिंग में संयुक्त सीमा तंत्र की बैठक का आयोजन करके चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों की गति बनाए रखी। एशिया की दो उभरती
महाशक्तियों ने अपने बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की एक पूर्वापेक्षा के रूप में सीमा पर शांति एवं अमन चैन बनाए रखने की केंद्रीय भूमिका पर जोर दिया। इस बैठक से भारत एवं चीन के बीच विकासशील संबंधों के लिए एक उभरते सांचे को मजबूती प्राप्त हुई - दीर्घ
अवधि की वार्ता के लिए सीमा विवाद जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सीमा पर शांति बनाए रखना एवं आर्थिक संबंधों को जारी रखना।
रूस के साथ समय की कसौटी पर खरे उतरे भारत के संबंधों की उस समय फिर से पुष्टि हुई जब श्रीमती सुजाता सिंह ने मास्को की यात्रा की तथा वैश्विक व्यवस्था में उतार - चढा़व के बीच भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों में रूस के अत्यधिक महत्व की फिर से पुष्टि की। उनकी
इस यात्रा के बाद दोतरफा यात्राओं का एक दौर शुरू होगा जो इस साल के उत्तरार्ध में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की भारत की राजकीय यात्रा के रूप में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचेगा।
होला लैटिन अमरीका!
भौगोलिक दृष्टि से दूर किंतु भावना की दृष्टि से समीप भारत ने लैटिन अमरीका के साथ भागीदारी गहन करने के लिए अपने राजनयिक बल का संकेत दिया है। लैटिन अमरीकी एक उभरती आर्थिक व्यवस्था है जहां कुछ सबसे महान साहित्यिक एवं सृजनात्मक प्रतिभाएं रहती हैं जो अथक रूप से
मैजिक एवं वास्तविकता का सामना करते हैं। अप्रैल के मध्य में श्री दिनकर खुल्लर की अर्जेंटीना एवं ग्वाटेमाला की यात्रा ने दर्शाया कि लैटिन अमरीका के साथ भारत अपनी भागीदारी पर बहुत जोर दे रहा है तथा इस साल के उत्तरार्ध में हाई प्रोफाइल यात्राएं होने वाली
हैं।
सचिव (पश्चिम) श्री दिनकर खुल्लकर और बोस्निया एवं हर्जेगोविना के द्विपक्षीय संबंधों के लिए
विदेशी मामलों के सहायक मंत्री अमेर कापेटानोविकयूरोप पर फोकस
चूंकि यूरोप यूरो जोन में लौट कर समुत्थान एवं आर्थिक उन्नति की नोक पर है, भारत पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों यूरोप के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने एवं सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध है। श्री दिनकर खुल्लर ने व्यापक श्रेणी की वार्ता के लिए 22 अप्रैल, 2014 को बोस्निया
एवं हर्जेगोविना का दौरा किया तथा वह 9 से 14 मई, 2014 के दौरान ग्रीक एवं फिनलैंड के दौरे पर जाने वाले हैं। भारत एवं नार्वे के वरिष्ठ अधिकारियों ने नई दिल्ली में व्यापक श्रेणी की वार्ता की तथा अन्य बातों के साथ नवीकरणीय ऊर्जा में सहयोग तथा संयुक्त रूप से
नवाचारों को बढ़ावा देने पर विचार - विमर्श किया। एशिया एवं 28 देशों की सदस्यता वाले यूरोपीय संघ के बीच सेतु का निर्माण करते हुए भारत ने 29 अप्रैल, 2014 को ब्रुसेल्स में एशिया - यूरोप बैठक (असेम) के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में भी हिस्सा लिया।
श्याम रीप, कंबोडिया में भारत मेकांग - गंगा सहयोग (एम जी सी) एशियाई वस्त्र संग्रहालय के
उद्घाटन के अवसर पर कंबोडिया की संस्कृति मंत्री सुश्री सुखाना एवं उप प्रधान मंत्री महामहिम सोक ऐन के साथ सचिव (पूर्व) श्री अनिल वाधवापरिवर्धित पूरब की ओर देखो नीति
पूरब की ओर देखो नीति की दृष्टि से चुनाव की इस घड़ी में अंत:क्रिया एवं पहल का एक नया दौर सामने आया क्योंकि भारत ने 10 देशों की सदस्यता वाले आसियान में अपना पहला पूर्णकालिक दूत नियुक्त किया। भारत ने वियतनाम एवं कंबोडिया के साथ अलग से वार्ता की जो दक्षिण पूर्व
एशिया के ऐसे देश हैं जो अपने आर्थिक उत्थान की कहानी फिर लिखने का प्रयास कर रहे हैं और इस क्षेत्र में अपना स्थान गढ़ रहे हैं। भारत एवं आसियान के बीच आर्थिक संबंध फल - फूल रहा है क्योंकि 2012-13 में द्विपक्षीय व्यापार 75 बिलियन अमरीकी डालर के आंकड़े को पार
कर गया। आर्थिक दृष्टि से जीवंत क्षेत्र के साथ अपने बहुस्तरीय सभ्यतागत एवं आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करते हुए भारत आज अपनी पूरब की ओर देखो नीति के दूसरे चरण में कदम रख रहा है जिसे राजनयिक सर्कल में ''परिवर्धित पूरब की ओर देखो नीति’’ कहा जाता है। श्री अनिल
वाधवा ने कहा कि ''हम नई शताब्दी के लिए एक परिवर्धित पूरब की ओर देखो नीति का निर्माण करने में इस समय जुटे हुए हैं जो हमारी सभ्यतागत पहुंच, हमारी आर्थिक आकांक्षाओं, एकीकरण की हमारी इच्छा तथा हमारे साझे मूल्यों एवं उद्देश्यों की क्षमता को पूरी तरह से स्वीकार
करती है।’’
आगे का रास्ता : उभरते अवसर
चुनाव की अवधि के दौरान बहुआयामी राजनयिक वार्ता जो विश्व के एक व्यापक आर्क में फैली है, ने दिल्ली में नई सरकार के लिए राजनयिक भागीदारी के लिए एक महत्वाकांक्षी एजेंडा के लिए मंच तैयार कर दिया है। कुल मिलाकर, उम्मीद है कि नई दिल्ली में गठित होने वाली नई
सरकार विदेश नीति पर सर्वदलीय सहमति को जारी रखेगी तथा अपनी स्वयं की शैली पर जोर देगी और इसमें कुछ मामूली सुधार करेगी जो बदलते समय के अनुरूप होंगे। विदेश नीति पर इस अलिखित राष्ट्रीय सर्वसम्मति में पड़ोसी देशों एवं विस्तारित पड़ोस के साथ सामरिक स्वायत्तता,
अच्छे संबंधों, भूमंडलीकरण से लाभ को अधिकतम करने के लिए मजबूत आर्थिक राजनय, प्रमुख महाशक्तियों एवं उभरती महाशक्तियों के साथ रचनात्मक भागीदारियों के माध्यम से बहु-ध्रुवीय विश्व के सृजन का वर्चस्व तथा नियमों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का संवर्धन
एवं वैश्विक अभिशासन की संस्थाओं का लोकतांत्रीकरण शामिल है।
नई सरकार के अधीन भारत की विदेश नीति के दृष्टिकोणों में परिवर्तन के बारे में
अटकलों के बीच देश के विदेश सचिव ने मौलिक सिद्धांतों को रेखांकित किया जो भारत की विदेश नीति की नींव हैं, जिनका बने रहना तय है, भले ही सत्ता में परिवर्तन हो जाए। 17 अप्रैल, 2014 को मास्को में रूसी राजनयिक अकादमी में भाषण देते समय श्रीमती सुजाता सिंह ने ''भारतीय
लोकतंत्र के कोलाहलपूर्ण एवं उल्लासपूर्ण महोत्सव का गुणगान किया तथा रेखांकित किया कि इन सभी वर्षों के दौरान देश की विदेश नीति के संदर्भों में मौलिक रूप से स्थिरता बनी रही है तथा भविष्य में भी ऐसा ही होगा। उन्होंने कहा कि ''निरंतर बदलते विश्व से निपटने
के लिए भारत का समग्र दृष्टिकोण स्थायी रहा है और रहेगा - उभरते अवसरों को पकड़ना, और साथ ही परंपरागत एवं गैर परंपरागत चुनौतियों के विरूद्ध निरंतर सतर्कता बरतना।''
यदि उभरते अवसरों को पकड़ना 21वीं शदी के राज्य शिल्प में गेम का नाम है, तो नई दिल्ली में नई सरकार को चाहिए कि वह अंतर्राष्ट्रीय परिधि में भारत के स्थान को सुदृढ़ करने के लिए गतिशील एवं कल्पनाशील राजनय को जारी रखने की पहल अपनाए जिसकी खासियत पश्चिम से पूरब
की ओर सत्ता के भंयकर परिवर्तन के रूप में हो।
(श्री मनीश चंद इंडिया राइट्सwww.indiawrites.org जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं इंडिया स्टोरी पर केंद्रित एक ई-मैग्जीन है, के मुख्य संपादक हैं)
(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार अनन्य रूप से लेखक के निजी विचार हैं)